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________________ सूझ गये। __ भोजन समाप्त हुआ। हाथ-मुंह धोकर सब विश्राम-गृह की ओर चले। वहाँ पान तैयार था। सब लोग भद्रास्तरण पर बैठे। युवरानीजी दीवार से सटकर तकिये के सहारे बैंठीं। बच्चे युवरानी के पास बैठे। एबलदेवी ने एक तैयार बीड़ा उठाया, उसे शान्तला को देती हुई बोली, "अम्माजी, यह बीड़ा अपने मुंह में डालने से पहले तुम मुझे एक वचन दो। आगे से तुम दोनों को आज की तरह स्पर्धा नहीं करनी चाहिए। बिट्टिदेव जिद पकड़कर स्पर्धा के लिए चुनौती दे तो भी तुम्हें उसके साथ कभी भी स्पर्धा नहीं करनी चाहिए, मुझे वचन दो। तुम दोनों में किसी भी कारण से द्वेष की भावना कभी उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। स्पधां कभी भी द्वेष का कारण बन सकता है। इसलिए वह न करने की बात कह रही हूँ। मेरा आशय यह है कि तुम दोनों में कभी कोई ऐसी बात नहीं होनी चाहिए जो तुम लोगों में आपसी द्वेष का कारण बन सके। है न?" शान्तला ने बीड़ा ले लिया और 'अच्छा, युवरानीजी, मैं राजकुमार से स्पर्धा अब कभी नहीं करूँगी1' कहकर मुंह में रख लिया। फिर युवरानी एचलदेवी ने बिट्टिदेव से कहा, "बेटा, छोटे अप्पाजी, वह तुम्हें हरा सकती है, इससे तुममें खीझ पैदा हो सकती है । इसी बात से डरकर मैं शान्तला से पचन की भेंट तुम्हारी वर्धन्ती के इस शुभ अवसर पर ले रही हूँ। मान-अपमान या हार जीत तो तुम्हारे हाथ है। धीरज से युद्ध क्षेत्र में डटे रहनेवाले राजाओं को सदा हार जीत के लिए तैयार रहना होगा। प्रभु कभी-कभी कहा करते हैं, तेलप चक्रवर्ती ने हार-पर-हार खाकर भी अन्त में परमार राजा भोज को पराजित किया। मुझे तुम्हारी सामर्थ्य पर शंका की भावना हो ऐसा मत समझो। इसके पीछे माता होने के नाते, कुछ दूसरा ही कारण हैं जिसे मैं पोय्सल युवरानी की हैसियत से प्रकट नहीं कर रही हूँ। केवल माँ होकर यह चाह रही हूँ, इसलिए तुमको परेशान होने की जरूरत नहीं।" उसे भी एक बीड़ा देती हुई युवरानी फिर बोली, "इस प्रसंग में एक बात और कहे देती हूँ, अप्पाजी । तुम्हारे पिताजी बलिपुर के हेगड़े मारसिंगय्याजी और उनके परिवार पर असीम विश्वास रखते हैं। अपने आप पर के विश्वास से भी अधिक उनका विश्वास इन पर है। तुम्हें भी ऐसा ही विश्वास उनपर रखना होगा। उसमें भी यह अम्माजो अकेली उनके वंश का नामलेवा है। उनके लिए बेटा-बेटी सब कुछ वही अकेली है। तुम्हें अपने सम्पूर्ण जीवित-काल में, कैसी भी परिस्थिति आए, इस अम्माजी को किसी तरह का दुःख या तकलीफ न हो, इस तरह उसकी देखभाल करनी होगी। उसका मन बहुत कोमल है किन्तु बिलकुल साफ और परिष्कृत भी है। किसी भी बात से उसे कभी कोई तकलीफ न पहुंचे, ऐसा उसके प्रति तुम्हारा व्यवहार होना चाहिए। जब मैं यह बात कह रही हूँ तब मेरा यही आशय है कि परिशुद्ध स्त्रीत्व के पट्टमहादेवी शान्ताला ::145
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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