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________________ 44 'यह कोई युद्ध क्षेत्र नहीं। यह तो अभ्यास का स्थान है। यहाँ स्त्री-पुरुष के या छोटे-बड़े के भेद के कारण अभ्यास नहीं रोकना चाहिए। आप लोगों ने सैनिक भट माया के साथ तो द्वन्द्व स्पर्धा की ही थी। स्पर्धा से भी आपमें आत्म-विश्वास की भावना उत्पन्न होगी।" सिंगिमय्या ने प्रोत्साहन दिया तो शान्तला वीरोचित वेष में सजकर तलवार हाथ में ले तैयार हो गयी और ब्रिट्टिदेव भी तलवार लेकर खड़ा हो गया। शान्तला की उस वेष की भंगिमा बहुत ही मनमोहक भी, उसके शरीर में एक तरह का स्पन्दन उत्पन्न हो रहा था। उसे देखता हुआ ब्रिट्टिदेव वैसा ही थोड़ी देर खड़ा रहा । "चुप क्यों खड़े हो ?" यह स्पर्धा देखने को उत्सुक उदयादित्य ने पूछा । दोनों स्पर्धार्थियों ने सिंगिमय्या की ओर देखा तो उसने अनुमति दी "शुरू कर सकते हैं। " दोनों ने वहीं सर झुकाकर गुरु को प्रणाम किया, तलवार माथे पर लगाकर उसे चूमा। दोनों तलवारों की नोकें एक सूमो से मिली और वारें पहले तो ऐसा लगा कि इस स्पर्धा में बिट्टिदेव जीतेगा क्योंकि उसका अभ्यास शान्तला से बहुत पहले से चल रहा था। इसलिए, इस नौसिखुए को आसानी से जीत लूँगा, यह आत्म-विश्वास था उसे शान्तला भी कुछ सोच-समझकर तलवार धीरेधीरे चलाती रही। लेकिन क्रमश: उसका हस्त कौशल नया रूप धारण करने लगा। उदयादित्य इन दोनों को अधिकाधिक प्रोत्साहित करने लगा । - सिंगमय्या और रावत मायण इन दोनों के हस्त कौशल से सचमुच खुश हो रह थे। चारों ओर तलवारों की झनकार भर गयी। करीब दो घण्टे हो गये, दोनों पसीने से तरबतर हो गये। बिट्टिदेव हार न मानकर भी इस घुमाव फिराव और उछल-कूद के कारण थक गये। परन्तु घण्टों के नृत्याभ्यास से घुमाव फिराव या उछल-कूद का अच्छा अभ्यास होने से शान्तला को कुछ भी थकावट महसूस नहीं हुई। उसकी स्फूर्ति और कौशल में ब्रिट्टिदेव से ज्यादा होशियारी लक्षित होने लगी। कभी-कभी बिट्टिदेव को पैर काँपने का अनुभव होता तो वह सँभलकर फिर शान्तला का सामना करने को उद्यत हो जाता। सिपाही मायण ने परिस्थिति को समझकर सिंगिमय्या के कान में कुछ कहा. 'अब इसे रोक देने की अनुमति दे दें तो अच्छा है।" GL 14. सिंगिमय्या ने सूचना दो, " राजकुमार थक गये हों तो रुक सकते हैं।" 'कुछ नहीं।" कहकर राजकुमार बिट्टिदेव माथे पर का पसीना, तलवार के चमकने से पहले ही, पोंछकर तैयार हो अपनी तलवार भी चमकाने लगा । शान्तला भी अपने मामा की बात सुन चुकी थी। उसने समझा यह अब रोकने की सूचना है। बिट्टिदेव की स्थिति का भी उसे आभास हो गया था। फिर भी यह 4 पट्टमहादेवी शान्तला :
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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