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________________ मस्तक नवरत्न-खचित किरीट से मण्डित हैं। उत्तय कर्णाभरण के साथ साँकलें कानों की शोभा बढ़ा रही हैं। माला उसके उन्नत वक्ष पर से होकर वक्षोगों के बीच वनखचित पदक से शोभित है। कटि में जवाहर-जड़ी करधनी जिसकी कमान के आकार की दोलड़ी साँकल झूलती हुई दिखायी गयी है। हाथ कंगन से शोभायमान हैं, बाहु पर केयूर, अंगुलियों में अंगूठियाँ, पैरों की अंगुलियों पर छल्ले, पैरों में पाजेब और एक प्रकार का साँकलनुमा पादाभरण है जो देवी के पादपद्मों पर अर्द्धवृत्ताकार से लगकर दीर्घ पादांगुलियों को चूमता है। नपे-तुले मान-प्रमाण से बनी यह मूर्ति प्रस्तर को होने पर भी सजीब लग रही है। लम्बी चम्पाकली-सी नाक, मन्दहास्युक्त अर्धनिपीलित नेत्र । ध्यानमुद्रा में कुछ आगे की ओर झुकी हुई प्रेम से अपनी ओर बुलानेवाली प्रेममयी माँ की भंगिमा देखते ही रहने की इच्छा होती है। दायें पैर की बगल में सात फनवाले सर्प नागराज का संकेत है। उसकी बगल में एक छोटी कमलासीन स्त्री-मूर्ति है, सर्वालंकार-भूषिता होने पर भी जिसके सिर के आल गाँठ के आकार के बने हैं। देवी के पीछे की ओर दो खम्भे हैं। उनमें गुल्मलताओं के उत्किरण से युक्त सुन्दर लताकार से निर्मित प्रभावलय अलंकृत है। इनपर दोनों ओर घण्टों की माला से विभूषित दो हाथी हैं जिनकी सूड उस सिंह के दोनों जबड़ों से मिलायी गयी है। प्रभावली के उस शिल्प की महीन उस्किरण की भव्यता देखते ही बनती है। बड़े लोग महासाध्वी नागियक्का के प्रांगण की ओर बढ़ गये, परन्त बिट्टिदेव और शान्तला वहीं उस मूर्ति के सामने खड़े रह गये। युवानी न पास खड़ रेविमय्य। के कान में कुछ कहा । वह वहीं थोड़ी दूर खड़ा रहा। थोड़ी देर बाद बिट्टिदेव ने पूछा, "इस विहार को बनानेवाले व्यक्ति बड़े विशाल हृदय के होंगे। वे पुण्यात्मा कौन होंगे, क्या तुम्हें मालूप है, शान्तला?" "हाँ, मालूम है । चालुक्यों के मन्त्रियों में एक दण्डनायक रूपभट्टय्या थे जिन्होंने न केवल इसे बनवाया, यहाँ केशव, लोकेश्वर और बुद्धदेव की मूर्तियों की स्थापना भी की। यह, हमारे बलिपुर के शिल्पी दासोज जो हमारे गुरु हैं उन्होंने बताया है।" शान्तला ने कहा। "इसका निर्माण करनेवाले शिल्पी कौन थे?" "क्यों, आप मन्दिर, विहार या वसत्ति का निर्माण करानेवाले हैं क्या?'' "इसे बनानेवाले शिल्पी के बारे में जानने की इच्छा रखनेवाले सभी लोग मन्दिर बनवाएँगे क्या?" "सभी की बात तो यहाँ उठी नहीं, आप अपनी बात कहिए।" "ऐसा कोई विचार नहीं, फिर भी जानने की इच्छा हुई है सो मालूम हो तो बता पदमहन्दी शाजन्ना .. 07
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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