SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बातों को व्यवस्थित रूप से तैयार कर रखा था। मदद के लिए चलिकेनायक को भी बुलाने की व्यवस्था हुई । इन्हीं दोनों ने धारानगर पर हमले के समय मिलकर काम किया था । राज - परिवार की सवारी के पहुँचने से दो-तीन घण्टे पहले ही हेगड़े को खबर मिली थी। हेगड़े, हेग्गड़ती, शान्तला, पटवारी, धर्मदर्शी, सरपंच, कवि बोकिमय्या, शिल्पी गंगाचारि, शिल्पी दासोज और उसका पुत्र चावुण, पुरोहित वर्ग तथा गण्य नागरिक लोग बलिपुर के दक्षिण के सदर द्वार पर स्वागत के लिए प्रतीक्षा में खड़े हो गये। मंगलबा थे साथ आरक्षक सेवा साधी के के लिए र. के दोनों तरफ कतार बाँधे उपस्थित थी। युवरानी और राजकुमारों का रथ सामने रुका। सारथि की बगल से रेविमय्या कूद पड़ा और रथ का द्वार खोल कुछ हटकर खड़ा हो गया। रथ से राजकुमार उतरे, युवरानीजी उत्तरी । हेग्गड़ती और शान्तला ने रोरी का तिलक लगाया और आरती उतारी। नजर भी उतारी गयी। रथ महाद्वार को पारकर शहर के अन्दर प्रवेश कर गया। सबने पैदल ही पुर प्रवेश किया। 'पोय्सल राजवंश चिरजीबी हो, कर्नाटक का सम्पदभ्युदय हो, युवरानीजी की जय हो, राजकुमारों की जय हो।' इन नारों से दसों दिशाएँ गूँज उठीं। पुरोहितजी ने आशीर्वाद दिया । ग्गड़ती ने युवरानी के पास आकर धीरे से कहा, "सन्निधान रथ में ही बैठी रहें, निवास में जाकर विश्राम करें, हम शीघ्र ही वहाँ पहुँचेंगी।" "इन्द्रगिरि और कटक पहाड़ पर चढ़नेवाली हम अगर चार कदम चलते ही थक जाएँ तो हमें क्या कष्ट होगा? आपके यहाँ के नागरिकों के दर्शन का लाभ पैदल चलने से ही मिलेगा हमें 11 फिर भी रास्ते के दोनों ओर लोग खचाखच भरे थे। घर-घर के सामने मण्डप रचा गया था। पैदल चलने की बात मालूम हुई होती तो हेग्गड़ेजी उसके लिए आवश्यक व्यवस्था पहले से ही कर लेते। सबने युवरानीजी को आँख - १ -भर देखा। भाव-विभोर लोगों ने समझा कि पोय्सल राज्य के सौभाग्य ने ही मूर्तिमान होकर उनके यहाँ पदार्पण किया है। बलिपुर की जनता से यह हार्दिक स्वागत पाकर युवरानीजी को आश्चर्य हुआ क्योंकि उन्होंने इस सबकी आशा नहीं की थी। उन्होंने सोचा, एकनिष्ठ हेगड़े और उसकी प्रजा से प्राप्त स्वयंस्फूर्त, संयमयुक्त, हार्दिक स्वागत को बल्लाल अपनी आँखों से देखता - समझता तो कितना अच्छा होता। निवास के द्वार पर दासब्बे और मल्लि ने आरती उतारी। हेगड़े मारसिंगया ने कवि नागचन्द्र से कहा, "आप यों कहीं भी रह सकते हैं लेकिन यहाँ यहाँ से ज्यादा स्वतन्त्र रह सकेंगे।" "युवरानीजी के आदेशानुसार करूँगा । व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए सभी स्थान बराबर हैं ।" कवि नागचन्द्र ने कहा । पट्टमहादेवी शान्तला : ३३१
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy