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________________ H 'वैसा ही हो, माँ।" बल्लाल ने धीरे से कहा, मगर उसके मन में तुलुम उठ ही रहा था । चालुक्य महारानीजी से आत्मीयता प्राप्त करके अपने स्वार्थ साधन के लिए हेगड़े चालुक्य- पोय्सल में द्वेष का बीज बो रहा है। वरना दण्डनायक और पद्मला ऐसा क्यों कहते, उनके मातहत काम करने से गुप्तचर ऐसों की लोगों से पोसल राज्य की हानि नहीं होगी ? शुद्ध हृदय रखनेवाले युवराज और युवरानी को ऐसे द्रोहियों की चाल मालूम नहीं हो पाती, दण्डनायिका के इस कथन में कुछ तथ्य है। "मेरे कथन में तुमको सन्देह हो रहा है, अप्पाजी ?" एचलदेवी ने पूछा। "ऐसा नहीं, माँ बात यह है कि मैं जिन दो स्थानों में विश्वास रखता हूँ उन दोनों से मेरे सामने दो परस्पर विरोधी चित्र उपस्थित हुए हैं। इसलिए...।" 'अप्पाजी, किसी भी विषय में जल्दबाजी ठीक नहीं। उनमें भी पोस्सल वंश की उन्नति के प्रति श्रद्धा और निष्ठा है। " 14 " तो फिर ?" "यह स्वार्थ है जो क्षणिक दौर्बल्य के कारण उत्पन्न होता है और जिसे भूलना ही हितकारक है। जैसा मैंने पहले ही कहा, यह सब सोचकर अपना दिमाग खराब न करके अपने शिक्षण की ओर ध्यान दो।" इसी समय घण्टी बजी। "प्रभुजी आये हैं, अब मुझे चलने दीजिए, माँ ।" कहकर बल्लाल चार कदम ही चला कि प्रभु एरेयंग अन्दर आ गये। देखकर बोले, "अप्पाजी, जा रहे हो क्या ?" "हाँ, गुरुजी के आने का समय हो रहा है।" बल्लाल ने जवाब दिया। +1 'कुछ क्षण बैठो।" कहते हुए प्रभु एरेयंग बैठ गये । युवरानी एचलदेवी ने कहा, "बोम्बला, किवाड़ बन्द करके थोड़ी देर तुम बाहर ही रहो, किसी को बिना अनुमति के अन्दर न आने देना।" और वे प्रभु के पास बैठ गर्यो। प्रभु एरेयंग ने कहा, "फिर युद्ध छिड़ने का प्रसंग उठ खड़ा हुआ है।" " किस तरफ से ?" युवरानी एचलदेवी व्यग्र हो उठीं। - "मलेपों की तरफ से बहुत तकलीफ हो रही हैं, यह खबर अभी यादवपुर से मिली है। दण्डनायक माचण यहाँ से सैन्य सहायता की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह सब चोल राजा की छेड़खानी है, इधर दक्षिण-पश्चिम की ओर। यदि अभी इन हुल्लड़बाजों को दबा न दिया गया तो वहाँ काँटे ही काँटे हो जाएँगे, बल्कि एक काँटेदार जंगल ही तैयार हो जाएगा। इसलिए हम अब दो-तीन दिन में ही उस तरफ सेना के साथ जा रहे हैं।" साथ ही वे बल्लाल से भी बोले, "कुमार, हमने अबकी बार तुमको साथ ले जाने का निश्चय किया है, इसलिए आज सब बातें समझाकर गुरु नागचन्द्र से सम्मति ले लो। चलोगे न हमारे साथ ?" 28 :: पट्टमहादेवी शान्तल
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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