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से लौट रहे थे। उनका अंगरक्षक रेविमच्या साथ था, दूसरा कोई नहीं था। बल्लाल ने भाई से पूछा, "छोटे अप्पाजी, शाम की यह ठण्डी-ठण्डी हवा बड़ी सुहावनी लग रही हैं, क्यों न थोड़ी देर कहीं बैठ लें?"
"हाँ, मैं भूल ही गया था कि रेविमय्या, तुम्हारा सलाहकार, साथ है। क्यों रेविमय्या, थोड़ी देर बैठे?"
___ "महामातृश्री सन्निधान कुमारों की प्रतीक्षा में है।" रेविमय्या ने विनीत भाव से कहा।
"क्या हम छोटे बच्चे हैं जो हमें चिड़िया उड़ा ले जाएगी, अगर माँ आक्षेप करेंगी तो मैं अपराध अपने ऊपर ले लँगा। तुम्हें और अम्माजी को डरने की जरूरत
नहीं।"
"राजमहल के उद्यान में भी शाम को सुहावनी हवा ऐसी ही रहती है।" रेविमय्या ने दूसरे शब्दों में अपना विरोध प्रकट किया।
"खुले में जो स्वातन्त्र्य है वह राजमहल के आवरण में नहीं मिलता। चलो, अप्पाजी थोड़ी देर इस यगची नदी के पश्चिमी मोर के आभ्र वन में बंटकर चलेंगे।" किसी के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही उसने घोड़े को उस तरफ मोड़ दिया। अब दूसरा कोई चारा न था, इसलिए रेविमय्या और बिट्टिदेव ने उसका अनुसरण किया।
वह आम्र बन राज-परिवार का ही था। तरह-तरह के आम कलम करके बढ़ाये गये थे। चारों ओर रक्षा के लिए आवश्यक घेरा बना था। प्रहरियों का एक दल भी तैनात था। पूर्वसूचना के बिना राजकुमारों का अचानक आ जाना प्रहरी के लिए एक आकस्मिक बात थी, वह दंग रह गया। वह पगड़ी उतारकर आराम से हवा खाता बैठा था। राजकुमारों के आने से घबड़ाकर पगड़ी उठाकर सिर पर धारण करने लगा तो वह खुल गयी और उसका एक सिरा पीछे की ओर पूँछ की तरह लटक गया। ढीली धोती ठोक कर चला तो ठोकर खाकर गिर पड़ा। संभलकर उठा और झुककर प्रणाम किया। उसकी हालत देख्न राजकुमार बल्लाल हँस पड़ा, "और कौन है?" प्रहरी से पहले बिट्टिदेव बोल पड़े, "दूसरा और कोई होता तो वह आराम से कहाँ बैठता?"
"दूसरा कोई नहीं है मालिक।" प्रहरी ने जवाब दिया।
"अच्छा जाओ, किसी को अन्दर न आने देना।" कहकर बल्लाल आगे बढ़ा। उसके इस आदेश का अर्थ बिट्टिदेव और रेविमय्या की समझ में नहीं आया। थोड़ी दूर पर यगची नदी एक मोड़ लेती है, वहाँ जाकर बल्लाल घोड़े से उतरा। सीढ़ी पर बैठा। विट्टिदेव भी घोड़े से उतरकर भाई के पास जा बैठा। रेविमय्या भी घोड़ों को एक पेड़ से बाँधकर थोड़ी दूर खड़ा हो गया।
दोनों भाई थोड़ी देर तक मौन बैठे रहे। बल्लाल ने मौन तोड़ते हुए कहा, "अप्पाजी, तुम्हें यहाँ तक बुला लाने का एक उद्देश्य है। दूसरा कुछ नहीं । हेरगड़े के
324 :: पट्टमहादेवो शान्तला