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________________ "यह तो दण्डनायकजी का मार्गदर्शन है, उसमें मेरा क्या है?" "संकोच क्यों, आप दोनों का दाम्पत्य जीवन अच्छा है, इसे क्या मैं नहीं जानती?" "राज-परिवार में यह धारणा है तो मैं धन्य हूँ।" "राज-परिवार अपने सभी आत्मीयों के बारे में सब बातों से परिचित रहता है। अबकी इस छोटे अप्पाजी के उपनयन की व्यवस्था आपने अच्छी तरह से की है। इसके लिए...।" "वह तो मेरा कर्तव्य है।" "परन्तु एक बात न मेरी समझ मे आयी, न प्रभु की समझ भी "कौन-सी बात?" "आज चौथ है न?" "कल पंचमी है!" "हाँ।" "कल ही है न छोटे अप्पाजी का उपनयन?" "हाँ, निर्णीत विषयों के बारे में सन्निधान क्यों प्रश्न कर रही है, इसका पता नहीं लग रहा है?" "दण्डनायिकाजी, समझिए, कल आपकी लड़की की शादी हो और आपके आत्मीय हो किसी को आने से षड्यन्त्र कर रोक दें तो आपको कैसा लगेगा?" "तो अब किसी ने ऐसा किया है?" "आपसे प्रश्न की प्रतीक्षा नहीं है। आप अपने को अनजान प्रदर्शित कर रही हैं इस समस्या से।" "तो क्या सन्निधान का मुझपर यह आरोप है कि मैं जानती हुई भी अनजान बन रही हैं?" "आप पर आरोप लगाने से मुझे क्या लाभ? उससे जो हैरानी हुई है वह दूर होनी चाहिए। जिन्हें बुलाया है क्या वे सब आये हैं?" "सब आये हैं, जो नहीं आ सके उनसे पत्र मिला है।" "तो राज-परिवार जिन जिनको आमन्त्रित करना चाहता था उन सबके पास आमन्त्रण पत्र पहुंचा है, है न?" "पहुँचा है। न पहुंचने का क्या कारण है ? अवश्य ही पहुँचा है।" । "तो बलिपुर के हेग्गड़े या उनके परिवारवालों के न आने का क्या कारण है? न आ सकने की सूचना आयी है?" "इसका क्या उत्तर दूं यह मेरी अल्पमति को कुछ सूझ नहीं रहा है।" 18 :: पट्टमहादेवो शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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