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________________ व्यवस्था और देख-रेख है, इसलिए उसके स्थान परिवर्तन की जल्दी भी थी। अपने बच्चों के शिक्षण का भार विश्वास के साथ आपके बेटे पर छोड़ रखा है, तो आपको युवराज के किसी काम पर सन्देह करने की जरूरत भी नहीं। आपको इस उम्र में, बुढ़ापे के कारण बहुत जल्दी प्रतिक्रिया का भाव उठता है। जल्दबाजी के कारण जो कोई प्रतिक्रिया हो जाती है उसके माने कुछ के कुछ हो जाते हैं। इसलिए ये सब विचार छोड़कर चुप रहने की सलाह प्रधान गंगराज ने महादण्डनायक को दी। इस विचार-विनिमय के फलस्वरूप दण्डनायक की बच्चियों को शिक्षण का लाभ हुआ। - राजकुमारों का अध्ययन जोर-शोर से चल पड़ा। बल्लाल में अध्ययन के प्रति जो आसक्ति पैदा हो गयी थी उसे देखकर कवि नागचन्द्र बहुत चकित हुए, उन्हें बड़ा सन्तोष हुआ था। इस सम्बन्ध में एक दिन उन्होंने युवरानी से कहा था, "बल्लाल कुमार की इस श्रद्धा का कारण सन्निधान हैं। " EL 'आप यदि खुले दिल से मुझसे बात न करते तो यह काम नहीं हो सकता था । इसका एक कारण यह भी है कि उस दिन अभ्यास के समय ही वह अधिक प्रभावित हुआ होगा। उसके दिल में आपकी उपदेश-वाणी झंकृत हो रही थी कि तभी मैंने भी खुलकर उससे बातें कीं। बल्कि कहूँ, इस भावना से आप बातें न करते तो पता नहीं राजकुमार के भविष्य का क्या हुआ होता।" " जब कभी अच्छा होना होता है तो बुद्धि भी ऐसो हो जाती है। यहाँ के प्रशान्त वातावरण में शिक्षण कार्य निर्बाध गति से चल रहा है। " 14 'आप तृप्त हो जाएँ तो पर्याप्त है।" 44 'मुझे तो तृप्ति है। छोटे राजकुमार की जितनी सूक्ष्म ग्रहण-शक्ति न होने पर भी बड़े राजकुमार की ग्रहण - शक्ति उच्चस्तरीय है। अब तो अध्ययन में उनकी एकाग्रता भी स्पष्ट दीखती हैं, कई बार वे छोटे राजकुमार से भी जल्दी पाठ कण्ठस्थ कर लेते हैं।" "पोय्सल राज-सिंहासन पर बैठने योग्य उसी को बनाइए, माँ होकर मैं यही माँगती हूँ। उसे प्रजा का प्रेमपात्र बनना चाहिए और प्रजा का विश्वासपात्र बनना चाहिए। इतनी योग्यता उसमें आनी ही चाहिए। " 44 ' इस विषय में आपको अविश्वास करने का कोई कारण नहीं। मैं इसी ध्येय को लक्ष्य में रखकर उन्हें शिक्षण दे रहा हूँ।" 64 'अच्छा कविजी, यहाँ आपको सब सुविधाएँ प्राप्त हैं न? अगर कोई दिक्कत हो तो बताइए । प्रभुजी से कहकर ठीक करा दूँगी।" 'चिण्णम दण्डनायकजी ने स्वयं इस ओर ध्यान देकर सारी व्यवस्था कर सब 14 100 पद महादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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