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________________ किसी खटपटवाली जगह तबादला कर दो। आपने माना नहीं। अब देखिए, वहीं हमारे लिए शूल बना है।" " वह काम इतना आसान नहीं। उसके सम्बन्ध में कुछ करने पर उसकी प्रतिक्रिया हम ही पर होगी। इस सबका कारण तुम ही हो। तुमने अपनी हस्ती हैसियत दिखाने के तैश में आकर उस हेग्गड़ती को पहले से जो अपमानित किया उसी का यह परिणाम है। हमसे ऊपर जो रहते हैं उनसे लगे रहनेवालों और उनके विश्वासपात्र जो बने उनसे कभी हमें द्वेष नहीं करना चाहिए। इस बात को कई बार समझाने पर भी तुम मानी नहीं । तुमको यह अहंकार है कि तुम्हारा भाई प्रधान है, तुम्हारा पति दण्डनायक है। तुम अपनी हैसियत पर घमण्ड करती हो। तुम्हारी इस भावना ने तुमको ही क्यों, बच्चों समेत हम सबको इस हालत में ला रखा है। " "हाँ, सारी गलती मेरी ही है। आपने कुछ भी नहीं किया।" "मैंने भी किया है, तुम्हारी बात सुनकर मुझे जो नहीं करना चाहिए था वह किया। उन दिन युवराज से महाराज बनने के लिए जोर देकर कहना चाहिए था। मुझसे गलती हुई । तुम्हारा कहना ठीक समझकर वैसा कहा, तभी से युवराज मुझे सन्देह की दृष्टि से देखने लगे हैं। अब स्थिति ऐसी है कि महाराज भी मेरी सलाह आमतौर पर स्वीकार नहीं करते । " " 'मेरे भाई ने भी सम्मति दी, तब आपने ऐसा किया। अब मेरे ऊपर दोष लगाएँ तो मैं क्या करूँ? मैंने जब यह सलाह दी थी तभी वह नहीं मानते और आपको जो सही लगता खही करते। मैं मना थोड़े करती। मुझे जो सूझा, सो कहा। क्या मैं आप लोगों की तरह पढ़ी-लिखी हूँ? अनुभव से जो सूझा सो कहा था। आप उन लोगों में से हैं जो स्त्री-शिक्षा के विरोध में विचार रखते हैं। आपको अपनी बुद्धि अपने ही वश में रखनी चाहिए थी।" यों उसने एक बनण्डर ही खड़ा कर दिया। "देखो, अब उन सब बातों का कोई प्रयोजन नहीं। हम पर युवराज शंका करें तो भी कोई चिन्ता नहीं। हमें बुरा मानें तब भी कोई चिन्ता नहीं। हमें तो उनके प्रति निष्ठा से ही रहना होगा। हमने जो भी किया, उसका लक्ष्य कभी बुराई करने का न था। इतना अवश्य है कि अपनी लड़कियों को हम उनके कुमारों के हाथों सौंप देना चाहते हैं।" EL 'अत्र वे यदि न मानें उनके मन में इस तरह की शंका उत्पन्न हो गयी है तो हमारी कैसी हालत होगी, यह कहना मुश्किल है। है न ?" "लड़का क्या कहता है, पद्मला ने कुछ बताया क्या ?" ""उसे क्या समझ हैं, लड़के ने कहा मालूम पड़ता है कि वह उसी से विवाह करेगा। वह खुशी से खिली बैटी थी. अब आँसू बहा रही है। " " युवराज की यात्रा की बात मालूम नहीं होने पर जो तुम आग बबूला होकर 248 पहाटे शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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