SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ से माँगने जैसा वर ही क्या है । ब्रह्मा ने जब यहाँ भेज दिया तभी माथे पर लिख भेजा है। उसे साध्य बनाने के लिए जरूरी मन भी उसने ही दिया है। बस इतनी तृप्ति रहे तो काफी है। देकव्वे, हेग्गड़ेजी को एक मण्डक और परोस ।" 64 'मैंने मण्डक माँगा नहीं, उसका उदाहरण दिया है।" पेट पर हाथ फेरते हुए हेगड़े ने कहा । इतने में मण्डक की परात और दूध का लोटा लिये देकव्वा आयी। भारसिंगच्या ने पत्तल पर झुककर कहा, "मैं खा ही नहीं सकता।" दण्डनायक ने कहा, "देकव्वे, एक काम करो। स्त्री-पुरुष के भेद बिना सब बड़ों को आधा-आधा और छोटों को उस आधे में आधा आधा मण्डक परोस दो। कोई इनकार न करे। यह हमारी अतिथियों के प्रति श्रेयः कामना का प्रतीक होगा।" 'अतिथियों के श्रेय के साथ अतिथियों का भी श्रेय सम्मिलित है, इसलिए यह भारी होने पर लेंगे।" शय्या ने कहा " - भोजन के पश्चात् सबने थोड़ा विश्राम किया । यह तय था कि विश्राम के पश्चात् सब फिर मिलेंगे। हेग्गड़े दम्पती के लिए एक कमरा सजाकर रखा गया था। बिद्रिदेव, चामला, शान्तला और उदयादित्य बाहर के प्रांगण में ही रहे। हाथ धोकर बल्लाल सीधा अपनी आदत के मुताबिक उस कमरे की ओर गया जहाँ वह बैठा करता था। यह कहने की जरूरत नहीं कि पद्मला वहाँ पहले ही पहुँच चुकी थी । बल्लाल ने जिस परिस्थिति की प्रतीक्षा की थी वह अब उपस्थित हो गयी। वह चाहता तो उसका निवारण कर सकता था। परन्तु उसका मन निवारण करने से पीछे हटता रहा। इसलिए वह सामना करने के लिए तैयार हो रहा था। वह इस प्रतीक्षा में चुप रहा कि पहले वही बोले। वह अन्दर खुद आयी थी। बल्लाल ने उसे बुलाया नहीं था। बैठने को भी नहीं कहा। उसे यह भी नहीं सूझा था कि क्या करना चाहिए। वह मौन रही, पत्थर की मूर्ति की तरह। बल्लाल को आशंका थी कि वह गुस्सा करेगी। उससे यह मौन सहा न गया। उसकी ओर देखा, वह ज्यों-की-त्यों अटल खड़ी रही। उसके मुँह से बात निकली, " वहीं क्यों खड़ी हो ?" परन्तु इस प्रश्न की क्या भावना थी, उसे मालूम नहीं पड़ा। पद्मला ने उत्तर तो दिया, "क्या करें ?" परन्तु अन्दर का दुःख बढ़ने लगा था, हिचकियाँ बँध गर्यो, आँसू बहने लगे । बल्लाल उठा, उसके पास गया। पूछा, "क्या हुआ ?" उसकी आवाज में कुछ घबड़ाहट थी । आँचल से आँसू पोंछकर बोली, "क्या हुआ, सो मुझे क्या मालूम ? अपने न पट्टमहादेवी शाला: 279
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy