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________________ सुनकर एरेयंग प्रभु आश्चर्यचकित हुए। "यह सारा विचार-विमर्श आप स्त्रियों हुआ है, यह मुझे सूझा ही नहीं। अच्छा हुआ।" में "प्रभु से मेरी एक विनती है।" Of 'विनती के अनुसार ही होगा।" "का है, दे रहे हैं, बाद में महाराज दशरथ से जैसा वरदान कैकेयो ने माँग लिया था वैसा कुछ कर लूँ तो ?" 11 "हमारी रानी कैकेयी नहीं है। उसकी विनती में स्वार्थ नहीं होता, यह हमारा अनुभव है।" "जिन नाथ वैसी ही कृपा हम पर रखें।" 14 'विनती क्या है, यह भी तो बताएँ।" "छोटे अप्पाजी के उपनयन के तुरन्त बाद हम तीनों बच्चे और गुरु कवि नागचन्द्रजी सोसेऊरु जाकर रहें। यहाँ रहने पर बल्लाल की शिक्षा-दीक्षा में वांछित प्रगति नहीं हो सकेगी।" 44 'वर्तमान राजकीय स्थिति में हमारा बलिपुर में रहना सोसेऊरु में रहने से बेहत्तर हैं, इसीलिए बलिपुर में रहने का हमने निर्णय भी कर लिया है। अब फिर इस निर्णय को बदलना...।" "उसकी आवश्यकता भी नहीं। दोरसमुद्र को छोड़कर अन्यत्र कहीं भी हो, ठीक हैं।" बीच ही में एचलदेवी ने कहा । "यह क्या, दोरसमुद्र पर हमारी रानी का इतना अप्रेम ?" " आपकी रानी कहीं भी रहे, कोई अन्तर नहीं पड़ता। उसके लिए कोई अच्छी, कोई बुरी जगह नहीं हो सकती। बच्चों के लिए, उनकी प्रगति के लिए, उनका यहाँ रहना अच्छा नहीं क्योंकि यहाँ सूत्र पकड़कर उन्हें चाहे जैसे नचानेवाले हाथ मौजूद हैँ।" "ठीक, समझ में आ गया। परन्तु कुमार ठीक रहे तब न ?" EF 'अब वह ठीक रास्ते पर है। मन का द्वार बन्द होने से उसमें अँधेरा भरा हुआ था। उस अँधेरे में किसी के दिखाये टिमटिमाते दीपक के प्रकाश में जितना दिखा उतने को ही दुनिया मानने लगा था वह अब उसके मन का दरवाजा खुला है, प्रकाश फैला हैं। भाग्य से गुरु अच्छे मिले हैं उसे । " "परन्तु हमने सुना है कि वे गुरु वह सूत्र पकड़नेवाले हाथों की ही तरफ से आये हैं।" "आये उधर से जरूर हैं, परन्तु निर्मल-चित्त हैं। उनमें कर्तव्य के प्रति अपार श्रद्धा है। वे न्यास- निष्ठुर भी हैं, उनमें इसके लिए आवश्यक आत्मविश्वास और धीरज भी है।" पट्टमहादेवी शान्तला : 271
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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