SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शान्तला ने कोई जवाब नहीं दिया। "छोड़िए तो, आपकी अकल को भी क्या कहूँ ? वह तो अनजान बच्ची है, जहाँ हम होंगे वहाँ वह भी साथ रहेगी।" +4 'अप्पा जी, रेविमय्या ने जरूर आने को कहा है। मैंने 'हाँ' तो कह दिया। परन्तु जाऊँ तो मेरी पढ़ाई रुक न जाएगी ?" GH 'थोड़े दिन के लिए रुके तो हर्ज क्या ? लौटते ही फिर सोख लेना।" माचिकब्बे ने कहा । iC 'हमारे गुरुजी कह रहे थे कि यदि धन सम्पत्ति गयी तो फिर कमाई जा सकती हैं, राज्य भी गया तो वह फिर पाया जा सकता है। परन्तु समय चूक गया तो उसे फिर पा नहीं सकते। बीते समय को फिर से पाना किसी भी तरह से सम्भव हो ही नहीं सकता 111 शान्तला ने कहा । "तुम जो सीखोगी उसे एक महीने के बाद भी सीखो तो कोई नुकसान नहीं। गुरुजी को क्या नुकसान है ? पढ़ावें या न पढ़ावें, ठीक महीने के समाप्त होते हो उनका वेतन तो उन्हें पहुँचा दिया जाता है।" माचिकब्बे ने कहा । मारसिंगय्या को लगा कि बात का विषयान्तर हो रहा है। " फिलहाल जाने में चार महीने हैं। अभी से इन बातों को लेकर माथापच्ची क्यों की जाय ? इस बारे में यथावकाश सोचा जा सकता है।" यों उन्होंने रुख बदल दिया। " उपनयन तो अभी इस कार्तिक के बाद आनेवाले माघ मास में होगा ? इतनी जल्दी चार महीने पहले निमन्त्रण क्यों भेजा गया है ?" माचिकब्बे ने पूछा । 44 'राजकुमार का उपनयन क्या कोई छोटा-मोटा कार्य है? उसके लिए कितनी तैयारी की आवश्यकता है। जिन-जिनको बुलाना अनिवार्य हैं उन सभी के पास निमन्त्रण भेजना है। कौन-कौन आनेवाले हैं। जो आएँगे उनमें किन- किनको कहींकहाँ ठहराना होगा, और उन-उनकी हस्ती - हैसियत के अनुकूल कैसी-कैसी सहूलियते करनी होंगी, फिर यथोचित पुरस्कार आदि की व्यवस्था करनी होगी। यह सब कार्य पूर्वनिश्चित क्रम के अनुसार चलेंगे। इसके लिए समय भी तो आवश्यक है । हमें चार महीनों का समय बहुत लम्बा दीखता हैं। उनके लिए तो ये चार महीने चार दिनों के बराबर हैं। इतनी पूर्वव्यवस्था के होते हुए भी अन्तिम घड़ी में झुण्ड के झुण्ड लोग आ जाएँगे तो तब ऐसे लोगों को ठहराने आदि-आदि की व्यवस्था करनी पड़ेगी। इसके अलावा यह राजमहल से सम्बन्धित व्यवहार है। सब व्यवस्था नपी-तुली होती हैं। इस काम में लगना भी मुश्किल, न लगे तो भी दिक्कत। वहाँ जब जाकर देखेंगे तब तुम्हें स्थिति की जानकारी होगी।" " 'हम तो स्थिति के अनुसार हो लेंगे, परन्तु आपकी इस बेटी को वहाँ की नयी परिस्थितियों से समझौता करने में दिक्कत होगी।" पट्टमहादेवी शान्तला :: 31
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy