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________________ की पढ़ाई चल रही है। मैं पाठशाला देखने जा सकती हैं।" "मैं स्वयं तो इस तरह कभी वहाँ नहीं गयी, मैं नहीं जानती कि इसे कविजी क्या समझेंगे।" एचलदेवी अपनी झिझक व्यक्त कर भी नहीं पायी थी कि घामधे हाकिमाना ढंग से बोल पड़ी, "जाने में क्या होगा, जा सकते हो। कविजी हमारे ही बल पर यहाँ आये हैं। इसमें समझने-जैसी क्या बात है?" "एक काम कीजिए, चामवाजी, किसी नौकर के हाथ पत्र भेजिए कविमी के पास। हमारे वहाँ जाने से उनके काम में कोई बाधा न होने की सूचना मिलने पर ही हमारा वहाँ जाना उचित होगा।" चन्दलदेवी ने सलाह दी। "तो उन्हें यहाँ बुलवा लें?" चामब्बे ने सलाह का उत्तर सलाह में दिया। "न, वे अपना काम बीच में छोड़कर न आएँ। हम आज जाने की बात ही छोड़ दें, कल पूछेगे।" बात यहीं खतम कर दी महारानी चन्दलदेवी ने । चामव्वे को बड़ी रानी के सामने अपने दर्प-पूर्ण अधिकार के प्रदर्शन का अवकाश जो मिला था वह भी हाथ से छूट गया। इससे खिन्न होकर हाथ मलने लगी बेचारी चामव्ये। "अब अच्छा हुआ। मैं छोटे अप्पाजी के जरिये जान लँगी। अगर कविजी स्वीकार कर लें तो कल बड़ी रानीजी वहां पढ़ाते समय उपस्थित रह सकेंगी।"युवरानी एचलदेवी ने कहा। दूसरे दिन की व्यवस्था में भी उसकी मटन अनपेक्षित है, चामन्चे के उतावले मन पर इस परिस्थिति ने भी चोट की पर उसने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। बड़ी रानी की सहज धारणा थी कि चामब्वा में स्वप्रतिष्ठा-प्रदर्शन की आकांक्षा हैं, लेकिन दोरसमुद्र में आने के बाद उसकी धारणा यह बनी कि उसमें स्वप्रतिष्ठा के प्रदर्शन की ही नहीं बल्कि एक स्वार्थ की भी भावना है, और उस स्वार्थ को साधने के लिए वह चाहे जो करने को तैयार हो जाती है । इस वजह से उन्होंने उससे न ज्यादा मेल-मिलाप रखा न व्यक्त रूप से दूर रखने की ही कोशिश की। उनको यह अच्छी तरह मालूम था कि उसने कुमार बल्लाल को क्यों जकड़ रखा है, परन्तु इस बात में उन्होंने दिलचस्पी नहीं ली। दूसरी ओर, उनकी प्रबल धारणा थी, वह सहज या असहज जो भी हो, कि शान्तला और कुमार बिट्टिदेव की जोड़ी बहुत ही उत्तम रहेगी। कल्याण रवाना होने से पहले वे इस सम्बन्ध में युवरानीजी से सीधे विचार-विनिमय करने का भी निश्चय कर चुकी थीं। मगर इस वक्त जो खामोशी छायी थी उसे तोड़ना जरूरी था। चामब्बा का उत्साह ठण्डा पड़ गया है, इसे भी वे समझ चुकी थीं। इसलिए उन्होंने बात छेड़ी,"क्यों चामव्वाजी, हमारे कल्याण का प्रस्थान करने से पहले किसी दिन आपकी बेटियों के गायन और नृत्य का कार्यक्रम हो सकेगा कि नहीं, बड़े राजकुमार इनकी बड़ी प्रशंसा करते हैं?" चामचे की बाँछे खिल उठीं। उसका आत्म-विश्वास पुनर्जीवित हुआ, उसका 252 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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