SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इधर दोरसमुद्र में एरेयंग प्रभु और चालुक्य बड़ी रानी चन्दलदेवी के स्वागत की भारी तैयारियाँ स्वयं प्रधान गंगराज और मरियाने दण्डनायक ने की थीं। सार्वजनिक व्यवस्था किस तरह से हो, स्वागत के अवसर पर कहाँ, कैसी व्यवस्था हो, राजधानी के महाद्वार पर कौन-कौन रहेगा, राजप्रासाद के द्वार पर उपस्थित रहकर स्वागत कौनकौन करे, चालुक्य बड़ी रानी चन्दलदेवीजी के लिए कैसी व्यवस्था हो और इस व्यवस्था और निगरानी का कार्य किसे सौंपा जाए यह योजना पहले हो निश्चित कर लो E व्यवस्था का क्षण-क्षण का विवरण युवरानी एचलदेवी को प्राप्त हो रहा था । परन्तु उन्हें यह बात खटक रही थी कि इस व्यवस्था के विषय में कभी किसी ने कोई सलाह उनसे नहीं ली। फिर भी, अपने पतिदेव को विजयोल्लास से हँसमुख देखने के आनन्द के सामने यह बाह्याडम्बर कोई चीज नहीं, यही सोचकर वे सन्तुष्ट थीं। आने की बात तो उन्हें मालूम थी। कम-से-कम चालुक्य बड़ी रानी की व्यवस्था में भी उनकी सलाह का न लिया जाना उन्हें बहुत अखरा, फिर भी वे शान्त रहीं क्योंकि राजमहल की रीति-नीति से वे परिचित हो चुकी थीं और उसके साथ हिलमिल गयी थीं । चामच्चे ने अपना बड़प्पन दिखाने के लिए इस मौके का उपयोग किया। कार्यक्रम रूपित करने में उसने अपने भाई गंगराज प्रधान को और पति दण्डनायक को सलाह दी थी । व्यवस्था का क्रम उसने करीब-करीब ऐसा बनाया जिससे राजमहल के अहाते में प्रवेश करते ही बड़ी रानीजी उसी की देखरेख में रह सकें। उसे यह दिखाना था कि वह पोय्सल राज्य की समधिन बनेगी। उसने समझा था कि उसका स्वप्न साकार होने के दिन निकट आ रहे हैं। युवराज के आते ही मुहूर्त ठीक करने का निश्चय कर चुकी थी । चालुक्य चक्रवर्ती और बड़ी रानी के सान्निध्य में महारानी का विवाह हो जाए और उसे चालुक्य महारानी का आशीर्वाद मिले, इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है। उसकी उत्साहजन्य विचारधारा बिना लगाम के घोड़े की तरह दौड़ रही थी । इसके फलस्वरूप कभी-कभी वह युवरानी को इस व्यवस्था का विवरण दिया करती, तो भी उसके ध्यान में यह बात नहीं आयी कि युवरानी से सलाह लिये बिना यह सब करना अच्छा नहीं। एक दिन किसी समाचार पर युवरानीजी ने टिप्पणी की, "इस विषय में मुझसे एक बार पूछ लेतीं तो मैं भी कुछ सलाह दे सकती थी।" यह बात सुनते ही चामव्या को कुछ खटका। अपने दिल के उस खटके को छिपाते हुए उसने कहा, "हमारे होते हुए छोटी-मोटी बातों के लिए युवरानीजी को कष्ट क्यों हो। हमें आपका आशीर्वाद- - मात्र पर्याप्त है।" यों कहकर चामव्वे ने आक्षेप से बचने की कोशिश की। 244 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy