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________________ हो गया और एक-दो क्षण खड़ा-का-खड़ा रह गया। उस दिन का प्रसाद श्रीदेवी को सबसे पहले मिला, उसके बाद क्रमश: हेग्गड़े, हेग्गड़ती, उनकी बेटी, धर्मदर्शी आदि को। इसके पश्चात् धर्मदशी ने श्रीदेवी को झुककर प्रणाम किया और कहा, "वहाँ कल्याण मण्डप में गलीचा बिछा दिया है, देवीजी कुछ विश्राम करें।" श्रीदेवी ने मारसिंगय्या की तरफ देखा तो उसने कहा. "बलिपर में लेग्गड़े की बात का मान है, तो भी यहाँ मन्दिर में, धर्मदर्शी के कहे अनुसार ही हमें चलना होगा।" धर्मदशी ने सबको पूर्व-नियोजित क्रम से बैठाया और उपाहार की बहुत अच्छी व्यवस्था की। उसे जो गौरव दिया जा रहा था उसकी धुन में थोड़ी देर के लिए वह भूल गयी थी कि वह श्रीदेवी है, चन्दलदेवी नहीं। बीच में धर्मदर्शी ने चन्दलदेवी को लक्ष्य करके कहा, "पता नहीं कैसा बना है, राजगृह में उपाहार का आस्वाद लेनेवाली जिला के लिए यह उपाहार रुचता है या नहीं?" श्रीदेवी ने फिर मारसिंगय्या की ओर देखा। "बहुत ही स्वादिष्ट है धर्मदर्शीजी, जिस धी का इसमें उपयोग किया गया है वह आपके घर की गाय का होगा, है न?" मारसिंगय्या ने पूछ।। हाथ मलते और दाँत निगोरते हुए धर्मदर्शी ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सर झुकाया। उपाहार के बाद मारसिंगय्या ने गालब्बे को एकान्त में ले जाकर कुछ कहा जिससे भयभीत होकर वह बोली, "मालिक, मुझे यह सब करने का अभ्यास नहीं, जो करना है वह न होकर कुछ और ही हो गया तो! यही नहीं, मैंने अपने पति से भी नहीं पूछा, वह गुस्सा हो जाएं तब?" "मैंने पहले ही उसे यह सब समझा दिया है, उसने स्वीकार भी कर लिया है। तुम निडर होकर काम करी, सब ठीक हो जाएगा। समझ गयीं।" "अच्छा मालिक।" दोनों फिर कल्याण मण्डप में आये। प्रसाद बँट चुका था। सब बाहर निकलने को हुए तो आगे-आगे शहनाईवाले चले। सब महाद्वार की ओर चले, गालब्बे पीछे रह गयी, किसी का ध्यान उसकी ओर नहीं गया। गाड़ी में चढ़ते वक्त माचिकच्चे ने पूछा, "गालब्बे कहाँ है?" "अपना शृंगार पति को दिखाने गयी है, दिखा आएगी। बेचारी, इस तरह कब सज-धज सकेगी?" हेग्गड़े मारसिंगय्या ने कहा। "वह नौकरानी होने पर भी देखने में बड़ी सुन्दर है।" श्रीदेवी ने कहा। गालब्चे ने सबको जाते देखा। डरती हुई-सी, घबराहट का अभिनय करती हुईसी धीरे-से महाद्वार से बाहर निकली। कुछ इधर-उधर देखा और गांव के बाहर की पट्टाहादेवा प्राप्ताना :: 2017
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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