________________
"भाभी को क्या, उनका प्रेम उनसे कहलवाटा है." इसी समय हेगड़तीजी हाथ में नाश्ते का थाल लिये वहीं आयीं। "यह क्या भाभी। आप ही सब होकर ले आयीं, हम खुद वहीं पहुँच जातीं।"
"मैं बुलाने को आयी थी, लेकिन आप लोगों की राजा-रानी की कथा का मजा किरकिरा न करके मैं यहीं ले आयी। साथ ही बैठकर खाएँगे, ठीक है न?"
"भाभी, यह कैसा सवाल कर रही हैं?"
"मुझे राजमहल की बातें नहीं मालूम । मैं गवार हूँ, एक फूहड़ हेग्गड़ती। तुमने राजमहल में ही समय व्यतीत किया है इसलिए अपने को रानी ही मानकर हम-जैसी गवारों के साथ नाश्ता करना अपने लिए अगौरव की बात मान लो तो?"
"नहीं, मेरी प्यारी ननदरानी, तुम ऐसी नहीं हो। वैसे ही कुछ पुरानी बात याद आ गयी। एक कहावत है, नाक से नय भारी। दोरसमुद्र में एक बार ऐसी ही घटना घटी थी। लीजिए, नाश्ता ठण्डा हो रहा है।"
__ "भाभी आपत्ति न हो तो दोरसमुद्र की उस घटना के बारे में कुछ कहिए।" चन्दलदेवी ने हेगड़ती को प्रसंग बदलने से रोकना चाहा।
"अरे छोड़ो, जो हुआ सो हो गया। पाप की बात कहकर मैं क्यों पाप का लक्ष्य बनूं।"
"मैंने सुना है कि हमारी युवरानीजी बहुत अच्छी और उदार हैं। ऐसी हालत में ऐसी घटना घटी ही क्यों जिसके कारण आपके मन में भी कडुआहट अब तक बनी है। इसलिए उसके बारे में जानने का कुतूहल है।"
"युवरानीजी तो खरा सोना हैं। उन्हें कोई बुरा कहे तो उसकी जीभ जल जाए। परन्तु उन्हीं से अमृत खाकर उन्हीं पर जहर उगलनेवाले लोग, दूध पीकर जहर के दाँत से डसनेवाले नागसर्प भी हैं न?"
"पोय्सल राज्य में ऐसे लोग भी हैं?"
"गाँव होगा तो वहाँ कीचड़ का गड्ढा भी होगा और उसके पास से गुजरें तो उसकी दुर्गन्ध भी सहनी होगी।"
"भाभी, आपकी बात बहुत दूर तक जाती है।" "दूर तक जाती है के क्या पाने?"
''अम्माजी ने बताया था कि वहाँ आप राजमहल में ही टिकी थीं। तो क्या वहाँ भी दुर्गन्ध लगी? दुर्गन्ध छोड़नेवाले लोगों का नाम न बता सकने के कारण आप शायद अन्योक्ति में बात कर रही हैं।"
"जाने दो। कोई और अच्छा विषय लेकर बात करेंगे। अपनी बड़ी रानी के बारे में कुछ कहो, वे कैसी हैं, उनके इर्द-गिर्द के लोग कैसे हैं, हम-जैसे सामान्य लोगों के साथ वे किस तरह का व्यवहार करती हैं?"
192 :: महमहादेवी शान्टला