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________________ "सब अच्छा ही समाचार है। पहले आप हाथ-मुँह धोकर शिवार्चन कर लें। सूर्यास्त के पहले भोजन हो जाए।" "मेरे लिए यह नियम लागू नहीं न7 मेरा शिवार्चन ऐसी जल्दबाजी में पूरा नहीं होता। इसलिए आप लोग भोजन कर लें। मैं आराम से यथावकाश अपने कार्यों से निबट लँगा। इस बात को रहने दें-अब यह कहें राजमहल की क्या खबर है?" "यह पत्र आप पढ़ लें।" कहती हुई उसे हेग्गड़े जी के हाथ में देकर पीछे की ओर मुड़ बेटी को देखकर पूछा, "अम्माजी! तुम्हारी ध्यान-पूजा समाप्त हो गयी? तो चलो, हम दोनों चलें और भोजन कर आवें । तुम्हारे अप्याजी को हमारा साथ देने की इच्छा नहीं।" "अप्पाजी ने ऐसा तो नहीं कहा न! अम्मी।" "हाँ, मैं तो भूल ही गयी । लड़कियां हमेशा पिता का ही साथ देती हैं । मेरे साथ तुम चलोगी न?" "चलो, चलती हूँ।" शान्तला ने कहा। माँ-बेरी दोनों भोजन करने चली गयीं। इधर हेग्गड़े मारसिंगय्या ने अपने उत्तरीय शिरोवेष्टन आदि उतारे और गद्दी पर रखकर तकिये के सहारे बैठ उस पत्र को पढ़ने लगे। इतने में नौकरानी गालब्ने ने पनौटी-पानी-गुड़ आदि ला रखा। "राजदूत चले गये?" गालब्बे ने कहा, "अभी यही हैं मालिक। कल दोपहर तक वे आपकी प्रतीक्षा करने के इरादे से यहीं ठहरे हैं। आपके दर्शन करके ही प्रस्थान करने का उनका विचार है। क्या उन्हें बुलाऊँ?" "वे आराम करते होंगे, आराम करने दो। मुझे भी नहाना है। शीघ्र तैयारी करो। तब तक मैं भी आराम करूँगा। उन अतिथियों के लिए सारी व्यवस्था ठीक है न?" "हेगड़तीजी के आदेशानुसार सभी व्यवस्था कर दी गयी है।" "ठीक है। अब जाओ।" स्नान, पूजा-पाठ से निवृत्त होकर भोजन समाप्त करके हेग्गड़े मारसिंगय्या बारहदरी में उसी झूले पर आ विराजे। उनके पीछे ही पान-पट्टी लेकर उसी झूले पर पतिदेव के साथ बैठी माचिकचे पान बनाने लगी। हेग्गड़े मारसिंगय्या ने पूछा, "हेग्गड़तीजी ने क्या सोचा है ?" "किस विषय में।" "सोसेऊरु के लिए प्रस्थान करने के बारे में।" पट्टमहादेवी शानला :: 23
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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