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________________ का ध्यान उस ओर आकर्षित होता । नवागन्तुकों के प्रति गौरव प्रदर्शित किया जाए तो दूसरों को कुतूहल होना स्वाभाविक हैं जो खतरे से खाली नहीं। उन्हें हेग्गड़ेजी ने इन सब विषयों में अच्छा शिक्षण दिया है।" " हेगड़ेजी की बेटी कैसी है?" "ऐसे बच्चे बहुत कम होते हैं, प्रभुजी वह अपने अध्ययन में सदा मग्न रहती हैं। अनावश्यक बात नहीं करती। आम तौर पर बच्चे आगन्तुक की और शारी दृष्टि से देखा करते हैं न; अतिथि लोग बच्चेवालों के घर साधारणतया खाली हाथ नहीं जाया करते न ? परन्तु उस बच्ची ने हमारी तरफ एक बार भी न कुतूहल- भरी दृष्टि से देखा न आशा की दृष्टि से हेग्गगड़तीजी ने जब हमें देखा और दो-चार क्षण खड़ी हो हमसे बातचीत की तब भी वह हमसे दूर, चार कदम आगे खड़ी रही और माँ के साथ ही चली गयी!" "तुम्हारी युवरानीजी को वह लड़की बहुत पसन्द है।" "उस लड़की के गुण ही ऐसे हैं कि कोई भी उसे पसन्द करेगा । " "तुम्हें भी उसने पागल बना दिया ?" "मतलब, उसने किसी और को भी पागल बना दिया है ?" "यह तो हम नहीं जानते। हमारा खास नौकर रेविमय्या है न, हेग्गड़ती की लड़की का नाम उसके कान में पड़ जाए तो ऐसा उद्वेलित हो उठता है जैसा चन्द्रमा को देख समुद्र ।" 14 " हर किसी को ऐसा ही लगेगा। उससे मिलने का मन हुआ यद्यपि छद्म-वेष में व्यक्ति किसी के साथ उतनी आस्मीयता से व्यवहार नहीं कर पाता। मैं उससे इसलिए भी दूर ही रहा क्योंकि हेग्गड़सीजी बड़ी रानी के बारे में वास्तविक बात अपनी बेटी को भी बताएँगी ही नहीं।" "ठीक, बड़ी रानीजी ने और क्या कहा ?" " 'इतना ही कि सन्निधान और प्रभु से मिलने के बाद आगे के कार्यक्रम के बारे में, अगर सम्भव हो तो सूचित करने के लिए कह देना ।" "ठीक है। समय पर बताएँगे।" एरेयंग प्रभु ने उठते हुए कहा, "हाँ, नायक, हम तुम्हारे आने की प्रतीक्षा में रहे। कल ही हमारी सेना धारानगर की तरफ रवाना होगी। सन्निधान की आज्ञा है कि सेना और हाकिमों के साथ युद्ध - शिविर के बाजार की कोई स्त्री नहीं जाए, सबको वापस भेज दिया जाए। सेना का विभाजन कैसा हो और कहाँ भेजा जाय इस पर कल विचार करने के लिए सभा बुलानी हैं। उसमें हमारे शिविर पर दण्डनायक, घुड़सवार सेनानायक, पटवारी और नायक बुलाये जाएँ। सबको खबर दे दें। अब सन्निधान की आज्ञा हो तो हम चलें।" 172 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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