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"क्या कह भेजा है ?"
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'किस किसने क्या क्या कहा, यह जानने को मैं और दीदी ज्यादा उत्सुक थीं। डरते-डरते मंच पर आयी थीं। यह प्रदर्शन हमने लोगों के सामने प्रथम बार किया इसलिए मन में बड़ी उत्सुकता हुई।" ""यह तो सहज है।"
"परन्तु फिर भी सबने प्रशंसा ही की।"
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'हमारे भाई ने क्या कहा ?"
"कहा, बहुत अच्छा था । " 'तुमसे कहा ?"
"नहीं, दीदी से कहा । "
" ठीक ही हैं।"
"ऐसा हुआ कि दीदी ने ही पूछा उनसे कि छोटे अप्पाजी का इस विषय में क्या मन्तव्य है । तब उन्होंने कहा कि उनके अभिप्राय के बारे में उन्हीं से पूछो। इसलिए माँ ने मुझसे कहा कि चानु, छोटे अप्पाजी हेग्गड़ेजी की लड़की के गुरु के साथ दोतीन पखवारे तक रहे। हेगड़ेजी की लड़की शान्तला बहुत ही अच्छा नृत्य करती है। और गाना भी बहुत अच्छा गाती है। उसके गुरु के सिखाने-पढ़ाने के विधि-विधान को देख-सुनने के अलावा वे कुछ दिन साथ रहने के कारण कई बातें जानते हैं जिन्हें हम नहीं जानते। तुम लोगों को सिखानेवाले उत्कल के हैं। उस लड़की को पढ़ानेवाले ग्रहों के हैं। तुम्हारे और उनके गुरुओं के सिखाने की पद्धति में कुछ भेद होगा। इससे बेहतर सीखने के लिए क्या करना चाहिए, इस बारे में पूछो। वे छोटे होने पर भी बड़ों की तरह बहुत बुद्धिमान हैं। इसलिए उनके पास हो आओ। विद्या सीखनेवाले छात्रों को सहृदय विमर्शकों की राय सुननी चाहिए। सुनने पर वह राय तत्काल अच्छी न लगने पर भी पीछे चलकर उससे अच्छा ही होता है। माँ ने यह सब समझाकर कहा, हो आओ। इसलिए मैं आयी। मैंने सच्ची और सीधी बात कही है। अब बताइए हमारा नृत्य-गान कैसा रहा । "
"ठीक ही था।"
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'मतलब ? कहने के ढंग से लगता है कि उतना अच्छा न लगा । "
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'ऐसा नहीं। आपके अल्पकालीन शिक्षण को दृष्टि में रखकर तो यही कहना पड़ेगा कि अच्छा ही है। वास्तव में लगता यह है जैसे आप लोग हठ पकड़कर अभ्यास कर रही हैं।"
"हमारे गुरुजी भी यही कहते हैं कि अच्छे जानकार से भी अच्छा सीखने की होड़ लगाकर परिश्रम से अभ्यास करने पर शीघ्र सीख सकते हैं।"
"सबका मत एक-सा नहीं रहता। अलग-अलग लोगों का अलग-अलग मत
166 :: पट्टमहादेवी शान्तला