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वल्लाल की दीका उसी ढंग से चली, "भाव? बहुत जातना है, न यह।" "आखिरी बार कह रही हूँ। बात बन्द करो।" एचलदेवी कुछ और गरम हुई। दोनों मुंह फुलाकर चुप हो गये। भोजन चुपचाप ही चला।
मासूम बनकर... बिना किसी को बताये लड़की के पीछे गये-ये बातें बिट्रिदेव के मन में चुभ रही थी।
विट्टिदेव को उस दिन किसी यात में उत्साह नहीं रहा। रेविमय्या को बुलाकर कहा, "चलो, घोड़े पर कहीं दूर तक हो आएँ।"
"छोटे अप्पाजी, आज कुछ अनमने लग रहे हैं?"
उत्तर में विट्टिदेव ने पहली बात को ही दुहरा दिया। रेविमय्या वहाँ से सीधा यवरानीजी के पास गया और चुपचाप खड़ा हो गया।
"क्या है, रेविमव्या?" "छोटे अप्पाजी उदास लग रहे हैं।" "लॉ, मालूम है।" "कहीं कुछ दूर हो आने की बात कह रहे हैं।'' "हाँ. हो आओ; अब उसे इसकी नारत है।" आज्ञा मिलने के बाद भी वह वहीं खड़ा रहा। "और क्या चाहिए?"
"वे क्यों ऐसे हैं, यह मालूम हो जाता तो अच्छा रहता। आर मुझसे कुछ पूछे तो मुझे क्या कहना होगा?"
"नादान बच्चों ने आपस में कुछ बहस कर ली। अप्पाजी की कोई गलती नहीं। कुछ नहीं, सब ठीक हो जाएगा। हमें इस बहस को प्रोत्साहित नहीं करना है। भाईभाई के बीच अभिप्रायों की भिन्नता से द्वेष नहीं पैदा होना चाहिए। बहस एक-दूसरे को समझने में सहायक होनी चाहिए। यह मैं संभाल लेंगी। तुम लोग हो आओ।"
रेविमय्या चला गया।
युवरानी एचलदेवी ने चर्चा सम्बन्धी सभी बातों का मन-ही-मन पुनरावर्तन किया। चामचा की प्रत्येक बात और हर एक चाल और गीत निर्विवाद रूप से स्वार्थ से भरी हुई ही लगी। लेकिन उसकी इच्छा को गलत कहनेवाले हम कौन होते हैं ? यदि यही भगवान की इच्छा हो तो उसे हम बदल ही नहीं सकते। खासकर बन्लाल को उस हालत में रुकावट क्यों हो जबकि वह पद्मला पर आसक्त है? हागड़ती और उसकी बच्ची के बारे में चामच्या की असूया और उनके बारे में बल्नाल के दिन में बुरो भावना पैदा करने की चेष्टा के कारण युवरानी एचलदेवी के मन में उसके प्रति एक जुगुप्मा की भावना पैदा हो गयी थी। यों तो बल्लाल कमार का मन निर्मल है। वह पचला की ओर आकृष्ट यहज ही है। इसपर हमें कोई एतराज नहीं। वह उसके भाग्य से सम्बद्ध
पट्टमहादेवी गाताना . In