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________________ हैं। परन्तु, आप लोग राजकाज पर आये हैं, मैं नहीं जानती कि कार्य किस तरह का है। यदि वह गोप्य हो तो आप लोगों को हेग्गड़ेजी के आने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।" "ऐसा कोई गोप्य विषय नहीं माताजी; फिर भी युवराज के सन्देश को सीधे हेगड़ेजी से निवेदन कर सकने का अवकाश मिलता तो अच्छा होता। निश्चित रूप से यह मालूम होता कि वे कब तक लौटेंगे तो हमें कार्यक्रम निश्चित करने में सुविधा होती।" "ऐसा कह नहीं सकती कि वे कब लौटेंगे। यदि आप लोगों को उनके दर्शन करने का भाग्य हो तो अभी इसी क्षण आ सकते हैं। नहीं तो पन्द्रह दिन भी लग सकते हैं।" "तो हम एक काम करेंगे। हम जो पत्र वहाँ से लाये हैं, उसे आपको सौंपेंगे और श्रीमयुवराज और युवरानीजी ने जो सन्देश कहला भेजा है उसे आपसे निवेदन करेंगे। हम कल दोपहना है डेजी ही तीक्षा करेंगी। बतक लो बदेकर जायें तो हमें जाने की आज्ञा देनी होगी। क्योंकि हमें बहुत-से कार्य करने हैं। दस-बारह कोस दूर पर रहने के कारण आपको पत्र और सन्देश पहुँचाना आवश्यक था जिससे आप लोगों को आगे का कार्यक्रम बनाने में सुविधा रहे । श्रीमान् युवराज का ऐसा ही आदेश है कि सन्देश पहले आपको मिले।" यह कहकर राजमुद्रांकित खरीता राजभट ने हेगड़ती के समक्ष प्रस्तुत किया। हेगड़ती माचिकब्बे ने खरीता हाथ में लेकर खोला और मन-ही-मन पढ़ा। बाद में बोली, "ठीक, बहुत सन्तोष की बात है। शुभ-कार्य सम्पन्न हो जाना चाहिए। इस कार्य में पहले ही बहुत विलम्ब हो चुका है। लेकिन अब तो सम्पन्न हो रहा हैयह आनन्द का विषय है।" "अब क्या आज्ञा है?" __ "जब तक हेग्गड़ेजी नहीं आते और विचार-विमर्श न हो तब तक मैं क्या कह सकती हूँ।" बड़े राजदूत ने निवेदन किया, "आपका कहना ठीक है। फिर भी श्रीमान् युवराज एवं विशेषकर श्रीमती युवरानी जी ने बहुत आग्रह किया है। उन दोनों ने हमें आज्ञा दी है कि इस शुभ-कार्य के अवसर पर आप दोनों से अवश्य पधारने की विनती करें। श्रीमती युवरानी जी को आपके घराने से विशेष प्रेम है।" "यह हमारा अहोभाग्य ! ऐसे उन्नत स्थान पर विराजनेवाले, हम जैसे साधारण हेग्गड़े के परिवारों पर विशेष अनुग्रह कर रहे हैं। यह हमारे पूर्व-पुण्य का ही फल है। और नहीं तो क्या? आप लोगों की बात-चीत और व्यवहार से ऐसा लगता है कि आप लोग उनके अत्यन्त निकटवर्ती और विश्वसनीय हैं।" "माँजी, आपका कथन ठीक है । उनके विश्वास-पात्र बनने का सौभाग्य, हमारे पूर्व-पुण्य का ही फल है। हम भाग्यशाली हैं। मेरा नाम रेविमण्या है और मैं राजगृह पट्टमहादेवी शान्तला :: 21
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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