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________________ "नहीं," दोनों ने कहा। ऐयंग हँस पड़ा। चूंकि हँसने लायक कोई बात नहीं थी इसलिए लोगों ने उनकी ओर देखा। "अश्व सेना के नायकों और सैन्य टुकड़ी के नायकों को सदा-सर्वदा चौकन्ना रहना चाहिए न?" "हाँ, प्रभो।" "जब आप लोग यह कहते हैं कि आप लोगों का परिचय चाविमय्या से नहीं है, तब यही समझना होगा कि आप लोग चौकाने नहीं रहे।" "जब हमने इन्हें देखा ही नहीं तो हमें पता भी कैसे लगे?" तिक्कम ने कहा। "परन्तु वह तुम लोगों को जानता है न? जब उसने तुम लोगों को देखा तब तुम लोगों को भी उसे देखना चाहिए था न?" "हो सकता है, देखा हो; परन्तु गौर नहीं किया होगा।" "सैनिक लोगों को सब कुछ गौर से देखना चाहिए। तभी न हमारे उनपर रखे विश्वास का फल मिलेगा?" "हम सतर्क रहते हैं। पर इनके विषय में ऐसा क्यों हुआ, पता नहीं, प्रभो।" "खैर, छोड़िए । आइन्दा हमेशा सतर्क और चौकन्ना रहना चाहिए, इसीलिए चाविमय्या को आप लागीक समक्ष बुलवाया। अच्छा, कायमच्या, तुमने लोगों को कहाँ देखा था? कब देखा था?" "आज सुबह, इनके शिविर में, इनके तम्बू के पास।" "तुम उधर क्यों गये?" चाविमय्या ने इर्द-गिर्द देखा। "अच्छा, रहने दो। कारण सबके सामने बता नहीं सकोगे न? कोई चिन्ता नहीं, छोड़ो।" "ऐसा कुछ नहीं प्रभो। आज्ञा हुई थी, उसका पालन करने जा रहा था। रास्ते में ये लोग नजर आये । इनके शिविर के पास और सीन-चार लोग थे। बड़ी रानीजी के गायब होने के बारे में बातचीत कर रहे थे। सबमें कुतूहल पैदा हुआ उस समाचार से। मुझे भी कुतूहल हुआ तो मैं वहीं ठहर गया।" "तो, खबर सुनते ही तुम लोगों में भी कोई कारण की कल्पना हुई होगी न?" साहणी लोगों से एरेयंग ने पूछा। "कुछ सूझा जरूर; बाद को लगा कि यह सब पागलपन है।" "हमसे कह सकते हैं न? कभी-कभी इस पागलपन से भी कुछ पता-अन्दाजा लग सकता है। कहिए, याद है न?" "तब क्या कहा सो तो स्मरण नहीं। पर जो विचार आया वह याद है।" 1.52 :: घट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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