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________________ चालुक्य चक्रवर्ती त्रिभुवनमल्ल विक्रमादित्य सारी जिम्मेदारी एरेयंग प्रभु को सौंपकर स्वयं निश्चिन्त हो गये। यह उत्तरदायित्व कितना बड़ा है, इस ओर उनका ध्यान नहीं भी गया हो परन्तु एरेयंग प्रभु ने यह जिम्मेदारी लेने के बाद एक क्षणमात्र भी व्यर्थ न खोया। अपने खास तम्बू में गुप्त मन्त्रणा की। उसमें भी अधिक लोगों के रहने से रहस्य खुल जाएगा, यह सोचकर उन्होंने केवल तीन व्यक्ति रखे : महामात्य मानवेग्गडे, कुन्दमराय, अंगरक्षक सेना के नायक हिरिय चलिकेनायक । वर्तमान प्रसंग का सूक्ष्म परिचय देने के बाद एरेयंग प्रभु ने इनसे सलाह माँगी। महामात्य ने कहा, ' प्रभो, बड़ो रानी चन्दलदेवों को अन्यत्र भेजने का बड़ा ही कदिन उत्तरदायित्व समुचित सुरक्षा व्यवस्था के साथ निभाना होगा; उन्हें, जैसा आपने पहले ही चालुक्य महाराज के समक्ष निवेदन किया था, कल्याण या करहाट भेज देना उचित है। सैन्य की एक दक्ष टुकड़ी भी उनके साथ कर देना अत्यन्त आवश्यक है। मेरा यही सुझाव है।" यह सुनकर एरेयंग ने कहा: "इस तरह की व्यवस्था करके गोपनीयता बनाये रखना कठिन होगा। इसलिए बड़ी रानी के साथ दो विश्वस्त व्यक्ति वेषान्तर में रक्षक बनकर यहाँ से रातों-रात रवाना हो जाएँ तो ठीक होगा। कल्याण में उतनी सुरक्षा की व्यवस्था न हो सकेगी जितनी आवश्यक है क्योंकि वहाँ परमारों के गुप्तचरों का जाल फैला हुआ है। इसलिए करहाट में भेज देना, मेरी राय में, अधिक सुरक्षित है।" कुन्दमराय ने कहा, "जैसा प्रभु ने कहा, बड़ी रानी को करहाट भेजना तो ठीक है, परन्तु वेषान्तर में केवल दो अंगरक्षकों को ही भेजना पर्याप्त नहीं होगा, रक्षक दल में कम-से-कम चार लोगों का होना उचित होगा। यह मेरी सलाह है।" प्रभु एरेयंग ने सुझाया, "बड़ी रानी के साथ एक और स्त्री का होना अच्छा होगा न?" कुन्दमराय ने कहा, "जो हाँ।" अब तक के मौन श्रोता हिरिय चलिकेनायक ने पूछा, "सेवा में एक सलाह देना चाहता हूँ। आज्ञा हो तो कहूँ ?" 'कहो नायक। तुम हमारे अत्यन्त विश्वस्त व्यक्ति हो, इसीलिए हमने तुमको इस गुप्त मन्त्रणा सभा में बुलाया है।" "रक्षकों का वेषान्तर में भेजा जाना तो ठीक है परन्तु परमार गुप्तचरों का जाल कल्याण से करहाट में भी जाकर फैल सकता है। वास्तव में अब दोनों जगह निमित्तमात्र के लिए रक्षक सेना है। बड़ी रानीजी यदि यहां नहीं होंगी तो उनके बारे में जानने का प्रयत्न गुप्तचर पहले कल्याण में करेंगे। यह मालूम होने पर कि वे वहां नहीं हैं, इन गुप्तचरों का ध्यान सहज ही उनके मायके की ओर जाएगा। इसलिए कल्याण और करहाट दोनों स्थान सुरक्षित नहीं। उन्हें किसी ऐसे स्थान में भेजना उचित होगा जिसकी पट्टमहादेवी शान्ताला :: 145
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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