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________________ वह प्रतिक्रिया दूसरा रूप धरकर आपके मुँह से व्यक्त हुई। यही न?" "शायद!" "वह क्या है, बताइए तो?" उस दिन सोसेऊरु में नृत्य--गान के बाद, जब युवरानी ने प्रसन्न होकर शान्तला को पुरस्कृत करना चाहा तब चामन्चे ने जो बातें कहीं उस सारे प्रसंग को शान्तला ने बड़े संकोच के साथ बता दिया। "चामव्या जैसे लोगों के होने से ही मनु ने 'बालादपि सुभाषितं' कहा है, अया। अच्छी बात हो हैं वः सदा अच्छा ही रही, जिसके मुँह से यह बात निकलती है, उसकी हैसियत, उम्न आदि ऐसी बात का मूल्य अवश्य बढ़ा देती है। यह दुनिया की रूढ़ि है। परन्तु अच्छी बात किसी के भी मुँह से निकले, चाहे अप्रबुद्ध बालक के मुंह से ही, वह ग्रहण करने योग्य है। लोग ऐसे विषय को ग्रहण नहीं करते, इसीलिए मनु ने इसे जोर देकर कहा है। अच्छा हमेशा अच्छा ही है चाहे वह कहीं से प्रसूत हो । चामल्वा जैसी अप्रबुद्ध अधिकारमत्त स्त्रियों के ही कारण बहुत-सी अनहोनो बातें हो जाती हैं।" "गुरुजी, बड़े बुजर्ग कहते हैं कि मानव-जन्म बहुत ऊँचा है, बड़ा है । फिर यह समें क्यों हो रहा है?" "इतना सब होते हुए भी मानव-जन्म महान् है, अम्माजी । हमारे ही जैसे हाथपैर, आँख-नाक-कानवाले सब बाह्य रूप की दृष्टि से मनुष्य ही हैं। मानव रूपधारी होकर तारतम्य और औचित्य के ज्ञान के बिना व्यक्ति वास्तविक अर्थों में मानव नहीं बन सकते। जन्म मात्र से नहीं, अपने अच्छे व्यवहार से मानव मानव बनता है। ऐसे लोगों के कारण ही मानवता का महत्त्व है।" "वास्तविक मानवता के माने क्या?" "यह एक बहुत पेचीदा सवाल है, अम्माजी । इसकी व्याख्या करना बहुत कठिन है, मानवता मनुष्य के व्यवहार एवं कर्म से रूपित होती है। वह बहुरूपी है। मनुष्य के किसी भी व्यवहार से, क्रिया से दूसरों को कष्ट न हो, कोई संकट पैदा न हो। मानवता की महला तभी है जब व्यक्ति के व्यवहार और कर्म से दूसरों का उपकार हो।" "बड़ी हैसियतवालों को ऐसी पानवता का अर्जन करना चाहिए, अपने जीवन में उसे व्यवहार में उतारना चाहिए। ऐसा करने से संसार का भी भला हो जाए। है न?" "हाँ अम्माजी । इसीलिए तो हम राजा को 'प्रत्यक्ष देवता' कहकर गौरव देते "उस गौरव के योग्य व्यवहार उनका हो तब न?' "हाँ, व्यवहार सो ऐसा होना ही चाहिए। परन्तु हम किस दम से कहें कि ऐसा पट्टमहादेवी शान्तला :: 1||
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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