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________________ इसका परिणाम क्या होगा? जानते हुए भी भैया वहाँ ठहरने के लिए उत्साही क्यों हुए? माता से यों जबरदस्ती अनुमति लेने की कोशिश भैया ने क्यों की? मुझे दोरसमुद्र होकर लौटने की मनाही क्यों हुई? मेरी शिवगंगा जाने की बात दोरसमुद्रवालों को क्यों मालूम नहीं होनी चाहिए?-आदि-आदि इन सारे सवालों का उठना तो सहज ही है। इन सब बातों की उलट-पुलट उसके मन में होती रही। इनमें से किसी एक प्रश्न का भी समाधान उसे नहीं मिल रहा था। समाधान मिलने पर भी इन सवालों के बारे में सोचे बिना रहना भी तो नहीं हो सकता था। छोटी-छोटी बातों पर भी गम्भीर रूप से सोचना उसका जैसे स्वभाव बन गया था। कुछ तो पता लगना चाहिए। यह कहना उचित न होगा कि उसे कुछ सूझा ही नहीं। माँ की इच्छा के विरुद्ध कुछ हुआ जरूर है। भैया ने वहाँ ठहरने एनं हेगड़े परितार के साथ इसके शिवगंगा जाने और इस बात को गोप्य रखने इन बातों में अवश्य कोई कार्य-कारण सम्बन्ध होना चाहिए। इतना ही नहीं, युवराज के पट्टाभिषेक सभारम्भ को स्थगित करने के साथ भी इन बातों का सम्बन्ध हो सकता है। अनेक तरह की बातें सूझ तो रही थी, परन्तु इस सूझ मात्र से वस्तुस्थिति को समझने में कोई विशेष मदद नहीं मिल पायी। काफी देर तक दोनों मौन बैठे रहे। . खामोशी को तोड़ते हुए बिट्टिदेव ही बोला, "रेविमय्या!" "क्या है अप्पाजी?" "माँ ने मेरे हेग्गड़े परिवार के साथ शिवगंगा जाने की बात को गुप्त रखने के लिए तुमसे क्यों कहा?" रेविमय्या अपलक देखता रहा, बिट्टिदेव की ओर। "लगता है इसका कारण तुम्हें मालूम नहीं, या तुम बताना नहीं चाहते?" "अप्पाजी, मैं केवल एक नौकर मात्र हूँ। जो आज्ञा होती है उसका निष्ठा से पालन करना मात्र मेरा कर्तव्य है।" "तुम्हारी निष्ठा से हम परिचित हैं। तो तुम्हें कारण मालूम नहीं है न?" "जी नहीं।" "मालूम होता तो अच्छा होता।" "हाँ, अप्पाजी। पर अभी मास्लम नहीं है।" "क्या मालूम नहीं है रेविमय्या?" अचानक आयी एचलदेवी पूछ बैठी। रेविमय्या झट से उठ खड़ा हुआ। ब्रिट्टिदेव भी उठा। माँ से बोला, "आओ माँ, बैठो।" कहते हुए आसन दिखाया। युवरानी बैठ गयी। बिट्टिदेव भी बैठ गया। क्षण भर वहाँ खामोशी छायी रही। युवरानी एचलदेवी ने पौन तोड़ते हुए कहना शुरू किया, "आप लोगों के सम्भाषण में बाधा पड़ गयी, छोटे अप्पाजी? क्यों, दोनों मौन क्यों हो गये?" 118 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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