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पाहुडदोहा
भारतीय अध्यात्म की प्राचीनतम परम्परा में भावात्मक अभिव्यंजना को अभिव्यक्त करने वाला एक विशुद्ध रहस्यवादी काव्य। काव्यात्मक धरातल पर आध्यात्मिक श्रमण-परम्परा के स्वरों से समन्वित तथा विद्रोहात्मक बोलों की अनुगूंज से भरपूर नौवीं शताब्दी की सशक्त रचना; जिससे हिन्दी का आदिकालीन तथा मध्यकालीन साहित्य भी प्रभावित हुआ। आत्मानुभूति के निश्छल प्रकाशन में अनुपम तथा परम साध्य को रेखांकित करनेवाली 220 दोहों में अनुबद्ध प्रामाणिक कृति। मुनि रामसिंह के भावों के व्यंजनात्मक अर्थ की शास्त्रीय आलोक में शास्त्रीजी की भाष्यरूप व्याख्या निश्चित ही अध्येताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। प्रत्येक बौद्धिकं एवं साहित्यकार के लिए उत्प्रेरक पठनीय एवं संग्रहणीय आत्मरुचि-सम्पन्न वर्ग के लिए विशेष रूप से स्वाध्याय योग्य।