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________________ कर लेने चाहिए ( १०, १५५ ) | बहुत सहायकों वाले राजा के सम्पूर्ण कार्य सिद्ध हो जाते हैं तथा उस की अभिवृद्धि होती है ( ४०, ८१ अमात्यों का महत्त्व प्रदर्शित करते हुए सोमदेव लिखते हैं कि राजा चतुरंग बल से युक्त होकर भी अमात्यों के बिना राजा नहीं रह सकता ( १८, १) । जिस प्रकार रथ का एक चक्र दूसरे चक्र की सहायता के बिना नहीं घूम सकता उसी प्रकार अकेला राजा भी अमात्यों की सहायता के बिना राज्य रूपी रथ का संचालन नहीं कर सकता ( १८, ३ ) | आचार्य कौटिल्य ने भी ठीक इसी प्रकार के विचार व्यक्त किये हैं । आगे सोमदेव लिखते हैं जिस प्रकार अग्नि ईंधन युक्त होने पर भी हवा की सहायता के बिना प्रज्वलित नहीं हो सकती उसी प्रकार बलिष्ठ व सुयोग्य राजा भी बिना सहायकों राज्य संचालन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता ( १८, ४) । उक्त बातों का तात्पर्य यही है कि राजा को अकेले कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। उसे सुयोग्य मन्त्रियों एवं अमारयों को नियुक्ति करनी चाहिए तथा प्रत्येक राज- कार्य में उन का परामर्श मानना चाहिए। स्वच्छन्द प्रकृति से राज्य नष्ट हो जाता है । 3 परोक्ष अन्य राज्यशास्त्र प्रणेताओं ने भी मन्त्रियों की नियुक्ति एवं उनके परामर्श से शासन का संचालन करने पर विशेष बल दिया है। मनु का कथन है कि जो राजा समस्त कार्यों को अकेला ही करने का प्रयत्न करता है वह मूर्ख है । मनु का यह विधान है कि राजा को मन्त्रियों को नियुक्ति अवश्य करनी चाहिए तथा राज्य के साधारण एवं असाधारण कार्यों पर उन्हों के साथ मिलकर विचार-विमर्श करना चाहिए। समस्त राज्य के कार्यों का तो कहना ही क्या, एक साधारण कार्य भी राजा को अकेले नहीं करना चाहिए। आचार्य विशालाक्ष का मत है कि अकेले किसी भी मनुष्य के विचार करने से मन्त्र-सिद्धी नहीं होती, क्योंकि राज्यकार्य प्रत्यक्ष, और अनुमान प्रमाण के आधार पर चलता है। तात्पर्य यह है कि राजकार्य सहायनिश्चित साध्य होता है। अज्ञात बात का ज्ञान प्राप्त करना, शात का निश्चय करना, बात को दृढ़ बनाना, मतभेद के समय उपस्थित सन्देह को निवृत्त करना, किसी विषय के अंश का ज्ञान प्राप्त हो जाने पर शेष अंश का अनुमान करना, यह सब कार्य मन्त्रियों की सहायता से ही सिद्ध हो सकते हैं। अतः बुद्धिमान् मन्त्रियों के साथ बैठकर ही राजा को मन्त्रणा करनी चाहिए । शुक्र का मत है कि सुयोग्य राजा मी समस्त बातें नहीं समझ सकता, पुरुष पुरुष में बुद्धिवैभव पृथक-पृथक् होता है, अतः राज्य की उन्नति १. कौ० अ० ७,१५ । २. ० ७ ३०-११ । १. बी. ७ १४ ५७ ॥ ४. दही, ७, ३०, ३१ ए ७५ . कौ० अर्थ १,१५ k. ८८ नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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