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शास्त्र प्रणेता माने जाते हैं। ब्रह्मा ने एक लाख अध्यायों में राजशास्त्र की रचना को थी, जिस को उपर्युक्त आचार्यों ने क्रमशः संक्षिप्त किया। गौरशिरा ने इस नीतिशास्त्र की रचना पांच सौ अध्यायों में की तथा व्यास ने उस को तीन सौ अध्यायों में संक्षिप्त कर दिया।
इस प्रकार मनुष्यों के कल्याणार्थ विभिन्न देवताओं ने दण्डनीति पर ग्रन्थ रचना की। महाभारत के वर्णन से राजशास्त्र अथवा दण्डनीति की प्राचीनता प्रकट होती है। भारत में इस शास्त्र का उद्भव कब हुआ, इस की ऐतिहासिक तिषि बताना अत्यन्त कठिन है । परन्तु इस में कोई सन्देह नहीं कि इस शास्त्र का अध्ययन भारत में बहुत प्राचीन काल से हो रहा था। महाभारत के शान्तिपर्व में राजशास्त्र के प्राचीन आचार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है। इन आचार्यों ने राजनीतिशास्त्र पर विशाल ग्रन्थों की रचना की थी। इन प्राचार्यों के नाम इस प्रकार है-विशालाक्ष, बृहस्पति, मनुप्राचेतस, भारद्वाज, गौरशिरा आदि । कौटिल्य ने भी अपने अर्थशास्त्र में उपर्युक्त अधिकांश आचार्यों का उल्लेख किया है। अर्थशास्त्र में विभिन्न स्थलों पर इन आचार्यों के मत उद्धृत किये गये हैं। उस में वर्णित आचार्यों के नाम इस प्रकार है---भारद्वाज, विशालाक्ष, पाराशर, पिशुन, कोणपन्त, वातव्याधि, बाहृदन्तीपुत्र । कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राजनीति के पांच प्रसिद्ध सम्प्रदायों का भी उल्लेख मिलता है, जिन के मत कौटिल्य ने उदषत किये हैं। इन सम्प्रदायों के नाम है-मानवा, बार्हस्पत्या, औशनसाः, '1. सब रह और मीनाः। नदिने उपक आचायों के प्रति अपना आभार प्रदर्शित किया है तथा उन की रचनामों को अपने ग्रन्थ का आधार बनाया है। इस से सिद्ध होता कि कौटिल्य से पूर्व ही भारत में राजशास्त्र का विधिवत् अध्ययन प्रारम्भ हो चुका था तथा इस विषय पर अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थों को रचना उपर्युक्त आचार्यों द्वारा की जा चुकी थी। पांच-पांच सम्प्रदायों की गुरु-शिष्य परम्परा एवं उन के द्वारा राजशास्त्र पर अनेक ग्रन्थों की रचना करने में पर्याप्त समय लगा होगा । इन समस्त बातों को दृष्टि में रखते हुए डॉ. भण्डारकर ने यह मत प्रकट किया है कि भारतमें इस शास्त्र का विधिवत् अध्ययन ईसा से सातवीं शताब्दी पूर्व से कम नहीं हो सकता ।' यह सम्भव है कि इस शास्त्र का प्रारम्भ और भी पहले हो चुका हो । भारतीय परम्परा द्वारा भी इस शास्त्र की प्राचीमता की पुष्टि होती है।
नीतिवाक्यामृत में भी उस के अज्ञात टोकाकार ने बहुत से प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध राजशास्त्र के आचार्यों के मतों का उल्लेख सोमदेव के मतों के समर्थन में प्रस्तुत किया है। इस में नारद, अत्रि, अंगिरा, ऋषिपुत्रक, काणिक, राजपुष, कौशिक, गर्ग,
१. नीतिप्रकाशिका-१, २१-२२ । २. महा० :न्तिा .१-३। ३. कौ० अर्थ, १,८। ४.नही, १. Prof. D. R. Bhandarkix-Some Aspects of Ancient Hindu Polity. PP. 23,
नीतिवाक्यामृत में राजनीति