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________________ से ग्रसित है तो उस को वाधिकार मिला हि, तुमसे प्रासा को राज्य सिंहासन पर आसीन कर देना चाहिए। महाभारत के आदिपर्व में इस प्रकार का वर्णन माता है कि धृतराष्ट्र के अन्षा होने के कारण ही उन्हें राज्य सिंहासन प्रास नहीं हुमा और उन के स्थान पर उन के छोटे भाई पाण्डु को राजा बनाया गया। शुक्रनीति में इस प्रकार का वर्णन उपलब्ध होता है कि यदि ज्येष्ठ राजकुमार पहरा, अश्वा, गंगा तथा नपुंसक हो तो ऐसी स्थिति में वह राज्याधिकार के सर्वथा अयोग्य है और उस के कनिष्ठ भ्राता अथवा पुत्र को उस के स्थान पर सिंहासनासीन करना चाहिए। साधारणतया राजतन्त्र वंशानुगत ही था। शतपथनाहाण में दस पीढ़ियों के वंशानुगत राज्याधिकार का वर्णन उपलब्ध होता है । यद्यपि उत्तराधिकार वंशपरम्परागत था किन्तु ज्येष्ठता का नियम प्रधान माना जाता था अर्थात राजा की मृत्यु अथवा उस के द्वारा राज्य का त्याग करने के उपरान्त उस का ज्येष्ठ पुत्र ही राज्य का अधिकारी होता था । अनुग्वेद में भी ज्येता के सिद्धान्त का वर्णन मिलता है। रामायण के अयोध्याकाण्ड में पशिष्ट राम से कहते हैं कि इक्ष्वाकुओं में यही परम्परा रही है कि राजा की मृत्यु के पश्चात् अथवा राज्यत्याग के उपरान्त उस का ज्येष्ठ पुत्र हो राज्य का अधिकारी होता है। कौटिल्य तथा मन भी ज्येष्ठता के सिद्धान्त को मान्यता प्रदान करते है। ___ज्येष्ठ पुत्र उसी समय राज्याधिकार से वंचित किया जाता था जबकि वह किसो शारीरिक अथवा मानसिक व्याधि से ग्रसित होता था। कभी-कभी राजा अपने कनिष्ठ पुत्र को भी उस को योग्यता से प्रभावित होकर तथा ज्येष्ठ पुत्र के दुराचरण से तंग आकर राज्याधिकारी मनोनीत कर देते थे। इस बात के कई ऐतिहासिक उदाहरण उपलब्ध होते हैं जबकि राजाओं ने अपने ज्येष्ठ पुत्र की उपस्थिति में ही छोटे पुत्र को अपने जीवन-काल में ही उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। समुद्रगुप्त मद्यपि चन्द्र गुप्त प्रथम का छोटा पुत्र था, किन्तु उस की योग्यताओं से प्रभावित होकर हो चन्द्रगुप्त प्रथम ने उसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इसी प्रकार समुद्रगुप्त ने भी अपने छोटे पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय अथवा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। १. मनु०६.२०१। २. महाकवादिई १०६, २५ । ३. शुक्राय १, ३४३.४।। ४. शतपथजाल । १. प्राग्वेद । ६.रामायण-अयोध्याकाण्ड ७३, २२ । ७. को अर्थ० १, १७ तथा मनृ०५, १८५। E.Gupta Irscriptions, P.GAllallaharl Pillar Inscription. Verset है. llbird. नीप्तिधाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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