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________________ में सोमदेव लिखते हैं कि जब राजा अपने निकटवर्ती कटम्बोजनों को उच्च पदों पर नियुक्त कर के जीवन पर्यन्त प्रचुर धन आदि देकर उन का संरक्षण करता है, तब अभिमान वश वे राज्यलोभ से राजा के घातक बन जाते हैं (२४, ५८)। राजा द्वारा जब सजातीय कुटुम्चियों के लिए सैन्य व कोश बढ़ाने वाली जीविका प्रदान कर दो जाती है तब वे अभिमानी हो जाते हैं। जिस का परिणाम भयंकर होता है। वे शस्तिशाली होफर व राज्यलोभ से राजा के बघ की सोचने लगते हैं (२४, ५९) । अतः उन्हें इस प्रकार की जीविका कदापि नहीं देनी चाहिए ।। राजा को अपने ऊपर श्रद्धा रखने वाले, भक्ति के बहाने से कभी विरुद्ध न होने वाले, नम्र, विश्वसनीय एवं आज्ञाकारी सजातीय कुटुम्बी तथा पुत्रों का संरक्षण करते हुए उन्हें उपव पदों पर नियुक्त करना चाहिए (२४, ६१-६२) । राजा को असंशोधित मार्ग में कभी गमन नहीं करना चाहिए (२५, ८४) । उस को मन्त्री, वैद्य तथा ज्योतिषी के बिना कभी किसी अन्य स्थान को प्रस्थान नहीं करना चाहिए ( २५, ८७)। राजा को चाहिए कि वह अपनी भोजन सामग्री को भधाण करने से पूर्व अग्नि में डालकर उस की परीक्षा कर ले और यह देख ले कि कहीं अग्नि से नीली लपटें तो नहीं निकल रही है। यदि ऐसा हो तो समझ लेना चाहिए कि वह सामगो विषय है! )! वस्त्रादि की भी परीक्षा अपने आप पुरुषों से कराते रहना चाहिए । ऐसा करने से राजा का जीवन सदैव विघ्नबाधाओं से सुरक्षित रहता है ( २५, ८९) । राजा को अपने महलों में कोई ऐसी वस्तु प्रविष्ट नहीं होने देनी चाहिए और न वहाँ से बाहर ही जाने देनी चाहिए जिस की परीक्षा प्रमाणित पुरुषों द्वारा न कर ली गयो हो एवं परीक्षा द्वारा निर्दोष सिद्ध न कर दो गयी हो ( २५, ११३ )। अधिक लोभ, आलस्य और विश्वास भी राजा के लिए घातक है। आचार्य सोमदेव का कथन है कि बृहस्पति के समान बुद्धिमान् पुरुष भी अधिक लोभ, भालस्य और विश्वास करने से मृत्यु को प्राप्त होता है अथवा टगा जाता है ( २६, १)। राजा अभिमानी सेवकों को कभी नियुक्त न करे और स्वामिभक्त सेवकों का कभी परित्याग न करे ( २१, ३९-४०)। शत्रओं से राजा को किस प्रकार अपनी रक्षा करनी चाहिए इस सम्बन्ध में भी सोमदेव ने कुछ निर्देश दिये हैं। वे लिखते है कि बलिष्ठ शत्र द्वारा आक्रमण किये जाने पर राजा को या तो अन्यत्र चले जाना चाहिए अथवा उस से सन्धि कर लेनी चाहिए । अन्यथा उस की रक्षा का कोई उपाय नहीं है ( २६, २)। जो पुरुष शत्रुओं द्वारा की आने वाली पैर-विरोध की परम्परा को साम, दाम, दण्ड, भेद आदि नैतिक उपायों से नष्ट नहीं करता उस की वंशवृद्धि कदापि नहीं हो सकती ( २६, १)। जिस प्रकार बिना नौका के केबल भुजाओं से समुद्र पार करने वाला व्यक्ति शीघ्र मृत्यु को प्राप्त होता है उसी प्रकार दुर्बल राजा बलिष्ठ के साथ युद्ध करने से शीघ्र नष्ट हो जाता है (२७६६)। अत: निर्बल को सबल शत्र के साथ कभी युद्ध नहीं करना चाहिए ।
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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