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________________ धर्मशास्त्रों में भी इस बात का उल्लेख है कि विभिन्न देवताओं के अंशों से राजा की रचना हुई। मनुस्मृति में लिखा है कि "ईश्वर ने समस्त संसार की रक्षा के लिए इन्द्र, वायु, यम, सूर्य, अग्नि, वरुण, चन्द्र और कुबेर के सारभूत अंशों से राजा का सृजन किया ।"" मनुस्मृति में इस प्रकार का उपदेश है कि "यदि राजा बालक मी हो तो भी उस का अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह मनुष्य रूप में एक महान् देवता है।* 3 इसी प्रकार आचार्य शुक्र भी राजा की देवी उत्पत्ति में विश्वास रखते थे । पुराणों में भी हम को इस सिद्धान्त का स्पष्ट वर्णन मिलता है। मत्स्यपुराण में लिखा है कि संसार के प्राणियों की रक्षा के लिए ब्रह्मा ने विविध देवताओं के अंशों से राजा की सृष्टि की। विष्णुपुराण में राजा के के मुख से प्रस्फुटित हुए हैं- "ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र, वायु, यम, सूर्य, वरुण, वाता, पूषा, पृथ्वी और चन्द्र तथा इनके अतिरिक्त और भी जितने देवता शाप देते हैं और अनुकम्पा करते हैं। वे सभी राजा के शरीर में निवास करते हैं । इस प्रकार राजा सर्वदेवमय है। प्रकार इस सिद्धान्व का दूसरा स्वरूप यह है कि राजा की तुलना विभिन्न देवताओं से इस कारण की जाती है कि उस के कार्य तथा गुण देवताओं के ही समान हैं। दोनों ही स्वरूप बहुधा एक ग्रन्थ में उपलब्ध हो जाते हैं और कभी-कभी वे पृथक् भी पाये जाते हैं। मनु राजा को देवताओं के अंश से उत्पन्न हुआ बतलाते हैं मौर उस को उन्हीं देवताओं के समान कार्य करने का आदेश भी देते हैं, जिन के अंशों से उसकी उत्पत्ति हुई है। इसका अभिप्राय यह है कि राजा के आवरण में देवत्व परिलक्षित होना चाहिए | मनु के अनुसार जब राजा में देवत्व है तो उसे अपने देवस्व के अनुसार ही कार्य करना चाहिए इस प्रकार मनु ने राजा को देवत्व प्रदान कर के उस के उत्तरदायित्वों तथा उस के कर्तव्यों को एक निश्चित मार्ग प्रदान कर दिया है। 4 १. मनु० ७ ४.५१ इन्द्रानिलनमा मवनेश्च वरुणस्य च । शियोश्चैव मात्रा निर्द्धल शाश्वतीः | यस्मादेव शुरेन्द्राणां मात्राभ्यो निर्मि] नृपः । तस्मादभिभवत्यैष सर्वभूतानि तेजसा । २. नहीं, ७-८ चालोऽपि नावमन्थ्यो मनुष्य इति भूमिपः । महतो केसा होगा नररूपेण तिष्ठति ॥ ३. शु० ९, ११-७२ ॥ ४. भ० २२६, १ ५. विष्णु० १. ११, २९ ६. मानु० ६. ३०३-२०१ स्वामी समरस वरुणस्थ च ॥ चन्द्रस्याने पृथिव्याश्च तेजोवृतं नृपश्चरेत् । वार्षिकाश्चतुरो ट्रान्यथेोऽभिप्रवर्षति । तथा राष्ट्र कामैरिन्द्रदत' चरन् ॥ राजा ६३
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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