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________________ शान्ति और व्यवस्था स्थापित कर के ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करमी राहिए जिस से व्यक्ति निर्वाध रूप से अपनी इच्छानुसार जीवन-यापन कर सके और अपने सुख एवं सुविधा के लिए ललित कलाओं की सृष्टि कर के अपने जीवन को सौन्दर्यमय बना सकें। इस प्रकार राज्य का उद्देश्य न केवल समाज की नैतिक एवं भौतिक उन्नति करना है, अपितु उस के जीवन को सौन्दर्यात्मक तथा सुरुचिपूर्ण बनाता भी है । इस दृष्टि से नृत्यकला, वाद्य, चित्रकला, शिल्पकला आदि के विकास को प्रोत्साहित कर के उन का समाज के जीवन के पूर्ण विकास में सहायक होना भी राज्य का कर्तव्य हो जाता है। काम को परिभाषा देते हुए आचार्य सोमदेव लिखते है कि जिस से समस्त इन्द्रियों में बाधा रहित प्रीति उत्पन्न हो वह काम है (३, ९)। इस में सन्देह नहीं कि उक्त ललित कलाएं मनुष्य के सुख का साधन हैं और उस के माध्यम से निःसन्देह समस्त इन्द्रियों में प्रोति उत्पन्न होता है । परन्तु आचार्य सोमदेव का मत है कि मनुष्य को संयमी और इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखने वाला होना चाहिए। अन्यथा वह एक ही पुरुषार्थ की प्राप्ति में रख हो जायेगा, विशेषकर काम पुरुषार्थ ऐसा है जिस की और मनुष्य का आकर्षण स्वामादिषः इ. से अधिक होता है : मोलेन्द्रिों पर विजय प्राप्त करने के लिए नोतिशास्त्र का अध्ययन आवश्यक बतलाया है ( ३, ९)। टीकाकार ने सोमदेव के इस कथन की पुष्टि में आचार्य वर्ग का मत प्रस्तुत किया है। जिस प्रकार लगाम के खींचने आदि की क्रिया से घोड़े वश में कर लिये जाते है, उसी प्रकार नीतिशास्त्र के अध्ययन से मनुष्य की चंचल इन्द्रियो वश में हो जाती हैं। सोमदेव का कथन है कि जिस की इन्द्रियाँ वश में नहीं हैं उसे किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिल सकती (३,७)। राजा के लिए भी उन का निर्देश है कि जो व्यक्ति ( राजा) काम के वशीभूत है, वह राज्यांगों ( स्वामी, अमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, कोश, बल और मित्र ) आदि से युक्त शक्तिशाली शत्रुओं पर किस प्रकार विजय प्राप्त कर सकता है (३,१०)। इस सम्बन्ध में नीतिकार भागुरि का मत सल्लेखनीय है, चाम के वशीभूत राजाओं के अंग ( स्वामो और अमात्यादि ) निर्बल या विशेष करने वाले होते है, इसलिए उन्हें और उन की दुर्बल सेनाओं को बलिष्ठ अंगों वाले राजा मार डालते है। विजय-लक्ष्मी के इच्छुक पुरुष को कदापि काम के वशीभूत नहीं होना चाहिए। आचार्य सोमदेव का कथन है कि नैतिक व्यक्ति को चाहिए कि वह धर्म, अर्थ और काम इन पुरुषार्थों का सम रूप से सेवन करें। एक का भी अति सेवन करने से व्यक्ति पतन के गर्त में चला जायेगा ( ३, ३-४ )। १, वर्ग-नीतियार, Fu। नीतिशास्त्रामधीते महतस्य पनि स्वान्यपि | वक्षणानि शनैर्वान्दि शाघात हया यथा । २. भार-नीतिब10, पृ०३६ । नोविवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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