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________________ आचार्य सोमदेव ने भी इस परम्परागत राज्य के सप्तांग सिद्धान्त का नोतिवाक्यामृत में पूर्ण समर्थन किया है । प्रत्येक अंग के गुण-दोषों पर भी उन्होंने प्रकाश डाला है। विभिन्न समुद्देशों में आचार्य ने इन राज्यांगों पर अपने विचार व्यक्त किये है। ___ इस प्रकार समस्त प्राचीन राजशास्त्र प्रणेताओं ने राज्य के सात अंगों का उल्लेख किया है । नाम अथवा वर्णन क्रम में भले ही कहीं अन्तर हो, किन्तु इस बात को सभी आचार्य स्वीकार करते है कि राज्य सात अंगों से निर्मित हुआ है। राण्यांगों के क्रम के विषय में मनु ने लिखा है कि राज्यांगों का क्रम उन के महत्त्व के अनुसार रखा गया है । इस का अभिप्राय यही है कि जिस अंग का सब से अधिक महत्त्व है उसे प्रथम स्थान पर प्रस्तुत किया गया है, उस से कम महत्त्व के अंग को द्वितीय स्थान पर और इपी प्रकार अन्य अंगों का कम है। इसी प्रकाट कौटिल्य ने भी राज्यांगों के क्रम एवं महत्त्व के सम्बन्ध में आचार्यों के विचारों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि आचार्यों का मत है कि स्वामी ( राजा ), अमात्य, जनपद, खुर्ग, कोश, सेना और मित्र इन पर विपत्ति आने पर अग्निम की अपेक्षा पूर्व की विपत्ति का माना अत्यात कष्टदायक है। अर्थात् राजा और अमात्य इन दोनों पर आपत्ति आने पर राजा की आपत्ति अधिक भयावह है, इसी प्रकार अन्य प्रकृतियों के सम्बन्ध में भी है। आचार्य सोमदेव ने भी कहा है कि राजा की रक्षा होने से समस्त राष्ट्र सुरक्षित रहता है 1४ आचार्य कौटिल्य तो यहाँ तक कहते हैं कि राजा हो राज्य है। राजनीतिप्रकाशिका एवं मत्स्यपुराण में भी राज्य के सप्तांगों में राजा को हो सर्वश्रेष्ट स्थान प्रदान किया गया है। राज्यांगों के महत्त्व के विषय में मनु के विचार उल्लेखनीय है ! उन के अनुसार विषम स्थिति में कुछ अंगों ( स्वामी, अमात्यादि ) का महत्त्व अवश्य है, किन्तु साधारण स्थिति में सभी अंग राज्य रूपी शरीर के लिए आवश्यक है और अपने-अपने स्थान पर सभी का महत्त्व है । एक अंग के अभाव की पूर्ति दूसरा नहीं कर सकता। राज्य का अस्तित्व तभी स्थायो हो सकता है जब उस के समस्त अंग परस्पर मिलकर और समविचार से कार्य करें। कामन्दक का भी इस विषय में यही विचार है। मनु १. मनु०६, २६१। सप्तानो प्रकृतीनां तु राज्यस्था यथाक्रमम् । पुन पुत्र गुरुतर जानीयाद्यसन महृत् ॥ २. कौ० अर्थ ५१। ३. बही। रखाम्बमात्य जनपददृर्गकोशदमित्रज्यसताना पुर्व पूर्व गरीय त्याचार्याः । ४. नीतिका० २४,१। १. कोपर्धन, ६, राजनीति मलाशिकः, पृ० १२३ । ७, मनु०६, २६७1 ८. कापन्दक ४,१. राज्य 8 .
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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