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________________ राज्य राज्य की प्रथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र तथा कामन्दक के नीतिसार में राज्य को परिभाषा उपलब्ध नहीं होती। इन में राज्य के अंगों अथवा प्रकृतियों का वर्णन तो है, किन्तु राज्य की परिभाषा नहीं है। प्राचार्य सोमदेवसूरि ने राज्यांगों के वर्णन के साथ ही राज्य की परिभाषा भी दी है। एक स्थान पर वह लिखते हैं कि राजा का पृटी की रक्षा के योग्य कर्म राज्य है (५, ४) । इसी प्रकार आगे उन्होंने लिखा है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद और पाश्रमों ( ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, पानप्रस्थ, संन्यास अथवा यति ) से युक्त तमा धान्य, सुवर्ण, पशु, तांबा, लोहा आदि धातुओं को प्रचुर मात्रा में प्रदान करने वाली पृथ्वी को राज्य कहते हैं ( ५, ५)। आचार्य सोमदेव ने उपर्युन परिभाषाओं में सूक्ष्म रूप से राज्य के विशाल स्वरूप का समावेश किमा है । इन के विश्लेषण से उस स्वरूप का परिज्ञान होगा। प्रथम' परिभाषा में मुख्य रूप से राज्य के तीन तत्त्व दृष्टिगोचर होते हैं(2) राजा, (२) पृथ्वी तथा ( ३ ) पृथ्वी की रक्षा के योग्य कर्म । उम के अनुसार राज्य का मल तत्व पृथ्वी है। परन्तु यह पृथ्वी ऐशो होनी चाहिए जो उपजाऊ हो, धनधान्य से पूर्ण हो और जिस में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, वाद्र और पति आदि नियाम करते हों। ऊसर तथा मनुष्य विहीन पृथ्वो को राज्य नहीं कहा जा सकता । द्वितीय परिभाषा में राज्य के दो प्रमुख तत्त्य विद्यमान है। एक पृथ्वी अथवा भूभाग और दुसग उस पर निवास करने वाली जनता । इस परिभाषा के सामने आते ही यह प्रश्न उपस्थित होता है कि पृथ्वी की रक्षा के योग्य कोन से कर्म हैं और उन्हें कौन कर सकता है । यह निर्विवाद है कि पृथ्ती की रक्षा सैन्य और कोष की शक्ति पर ही निर्भर है । अतः पृथ्वी की रक्षा के हेतु शर-वीर एवं देशभक्त सैनिकों का संगठन करना राजा का परम कर्तव्य है। सेना को वेतन आदि से सन्तुष्ट रखने और उसे अस्त्र-शस्त्रादि से सुसज्जित करने के लिए कोश की आवश्यकता होती है। सेना ही नहीं, अपितु समग्र शासन यन्त्र का संचालन पूर्णतया कोश पर ही निर्भर है । इस कारण देश की रक्षा और समृद्धि के लिए कोश की आवश्यकता होती है । अतः राजा का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह उत्तम कृषि-वार्ता तथा अन्य उचित उपायों द्वारा समृद्धिशाली कोश का निर्माण करे । आचार्य सोमदेव राज्य
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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