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________________ हो है । इस के अतिरिक्त उन के प्रखर तर्कशास्त्र के पाण्डित्य को प्रकट करने वाले अन्य श्लोक भी हैं। आत्माभिमान को प्रकट करने वाला एक श्लोक है जिस में वे स्वयं को दर्पान् गजों के लिए सिंह के समान नाव करने ललकारने वाला और वादिगजों के दलित करने वाला मानते हैं। सोमदेवसूरि के शास्त्रार्थ करते समय वागीश्वर या वाचस्पति बृहस्पति भी नहीं ठहर सकते । , , सोमदेव केवल एक शुष्क तार्किक ही नहीं थे, अपितु साहित्य ममंश सहृदय हृदयाह्लादक रसविशेषज्ञ भी थे। तक का विषय शुष्क व काव्य का विषय सरस होता है, फिर भी काव्य के रचयिता होने पर भी इन के जीवन का बहुत कुछ समय तर्कशास्त्र के स्वाध्याय और मनन में ही व्यतीत हुआ । तर्कशास्त्र के उद्भट वैदुष्य के कारण हो उन्हें स्याद्वादाचलसिंह, वादोभपंचानन और तार्किकषक्रवतीं आदि विशेषणां से अलंकृत किया गया है। सोमदेव व्याकरण, काव्य, धर्मशास्त्र और नोतिशास्त्र के भी पारंगत विद्वान् थे । इस प्रकार हम सोमदेवसूरि को महाकवि, धर्माचार्य, तार्किक तथा राजनीतिज्ञ के रूप में देखते हैं । ( नीतिवाक्यामृत के निर्माता सोमदेवसूरि का अध्ययन बहुत विशाल था । दे साहित्य, न्याय, व्याकरण, काव्यशास्त्र, दर्शनशास्त्र आदि सभी विषयों के प्रकाण्ड पण्डित थे । जैन साहित्य के पूर्ण परिचय के साथ से जैनेतर साहित्य से भी पूर्णतया परिचित थे। प्राचीन काल के सभी महाकवियों में उन्होंने जैनधर्म के सिद्धान्तों की झलक देखो और उन महाकवियों के काव्यों में नवक्षपणक और दिगम्बर राधुओं का उल्लेख पाया । ऐसा प्रतीत होता है कि वे इन सभी कवियों के साहित्य ये पूर्णतया परिचित थे । इस प्रकार साहित्य के क्षेत्र में उन का विस्मयजनक, विस्तृत एवं विशाल अध्ययन था । व्याकरण के विषय में भी उन्होंने पाणिनि व्याकरण के अतिरिक्त ऐन्द्रव्याकरण, चान्द्रव्याकरण, जैनेन्द्रव्याकरण और मापिथलव्याकरण का भी अध्ययन किया था। ५ नीतिशास्त्र प्रणेताओं में बृहस्पति, शुक्राचार्य, विशालक्ष, परीक्षित, पराशर, भीम, भीष्म और भारद्वाज आदि का कई स्थानों पर स्मरण करते हैं। कौटिलीय अर्थशास्त्र से तो वे पूर्णतया परिचित ये ही ( ३,९,१०, ४, १३, १४ ) । गजविद्या, अश्वविद्या, रत्नपरीक्षा, कामशास्त्र आदि विद्याओं तथा उन के आचार्यों का भी उन्होंन ९. म० प्रशस्ति दोष सिन्धु सहनादे पा श्री सोमदेवमुनि वचनाराले बार्गीश्वरोऽपि पुरतस्ताकाले । २. श आ० १ ० ६५ । ३. नही, आ० २, पृ० २३ मसूर और उनका नीतिवाक्यामृत *
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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