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________________ है। पुनरुक्ति के घोष की उपेक्षा कर के अनेक स्थलों पर उन्होंने राजा को अनुचित दण्ड देने से सावधान किया है । दण्ड देने से ओ हानि होती है उस की ओर भी आचार्य ने संकेत किया है। ये लिखते हैं कि जो राजा अज्ञानता के कारण तथा क्रोध के वशी. भूत होकर दण्डनीति की मर्यादा का उल्लंघन कर के अनुचित ढम से दंड देता है उस से समस्त प्रजा के लोग द्वेष करने लगते है दुष्प्रणीसो हि दण्डः कामक्रोधाभ्याम ज्ञानाद्वा सर्वविद्वेषं करोति । इस लिए विधेको राजा को काम, झोध और अज्ञान के वशीभूत होकर कभी दार नहीं देना चाहिए । राजा के लिए दण्ड का त्याग भी उचित नहीं है । यदि अपराधियों को दण्ड न दिया जायेगा तो समाज में अव्यवस्था फैल जायगो । अत: न्यायो रामा को अपराध के अनुकूल दण्ड देकर प्रजा को श्रीवृद्धि करनी चाहिए । गुरु का कथन है कि जो राजा पापयुक्त दण्ड देता है, परन्तु दण्डनीय दुष्टों को दण्ड नहीं देता उस के राज्य की प्रजा में मात्स्यन्याय का प्रचार हो जाता है । इस से सर्वत्र अराजकता का सृजन होता है। अतः इस अराजकता को रोकने तथा समाज में शान्ति एवं व्यवस्था की स्थापना के लिए राजा के लिए उचित दण्ड का प्रयोग परम भावश्यक है। पुविचार तथा पुनरावेदन धर्मशास्त्रों में पुनर्विचार का भी उल्लेख मिलता है । यदि बादी को किसी न्यायालय के निर्णय से सन्तोष नहीं होता था अथवा बह यह समझता था कि उस का निर्णय उचित रूप से नहीं हुआ है अथवा उचित अधिकारियों द्वारा नहीं दिया गया है तो बह अर्थ दण्ड देकर न्यायालय द्वारा उस निर्णय पर पुनर्विचार कराने का अधिकारी था 1 नोतिवाश्यामृत में इस प्रकार की व्यवस्था का कोई उल्लेख महीं मिलता। किन्तु उस में यह वर्णन अबश्य प्राप्त होता है कि ग्राम अथवा नगर के न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध राजा के न्यायालय में अपील हो सकती थी ( २८, २२ ) । इस प्रकार मोतिवाक्यामृत में पुनरावेदन अथवा अपील की व्यवस्था का उल्लेख मिलता है । इस के साथ ही सस में यह बात भी स्पष्ट रूप से लिखी है कि राजा का निर्णय अन्तिम होता था और उस निर्णय के विरुख कोई अपील नहीं हो सकती थी, क्योंकि राजा का न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय पा 1 जस निर्णय के विरुद्ध यदि कोई व्यक्ति किसी प्रकार का असंतोष प्रकट करता था अथवा उस की अवज्ञा करने का साहस करता था तो ससके लिए मृत्युदण्ड का विधान था ( २८, २३)। गुरुनौतिवा०, पृ०१०।। बण्स्यं दण्डति नो यः पापदण्डसमन्वितः। • तस्य राष्ट्र न संवेहो मारस्यो म्यायः प्रकीतिराः ।। १८२ नीहिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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