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________________ राज्य दोनों की ही उन्नति एवं विकास सम्भव हो सके नीतिवाक्यात में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर भी विशद विवेवम हुआ है। षाड्गुण्यतीति का चित्रण अर्थशास्त्र के समान ही किया गया है । सोमदेव के यशस्तिलक चम्पू महाकाव्य के तृतीय आश्वास में भी राजनीति का विशद वर्णन प्राप्त होता है। नीतिवाक्यामृत तथा यशस्तिलक के अध्ययन से सोमदेव की महान् राजनीतिज्ञता प्रकट होती है । डॉ० श्यामशास्त्री नीतिवाक्यामृत को नीतिसार के समान ही कौटिलीय अर्थशास्त्र का संक्षिप्त रूप मानते है। उन के इस कथन का आधार नीतिवाक्यामृत के सूत्र, वाक्यविन्यास एवं रचनाशैली है । अतः वे इस ग्रन्थ को एक मौलिक रचना स्वीकार नहीं करते । डाँ० श्यामशास्त्री के इस कथन से हम सहमत नहीं हैं । कामन्दक के नीतिसार की भाँति नीतिवाक्यामृत को भी कौटिलीय अर्थशास्त्र का संक्षिप्त रूप मानना सोमदेव के महान् आचार्यत्व एवं उन को बहुमुखी प्रतिभा की उपेक्षा करना ही होगा । यद्यपि दोनों ही ग्रन्थों में कुछ स्थलों पर समानता दृष्टिगोचर होती है, किन्तु इस आधार पर नीतिवाक्यामृत को अर्थशास्त्र का संक्षिप्त रूप नहीं माना जा सकता । कौटिल्य ने जिस प्रकार प्राचीन आचार्यों द्वारा विरचित अर्थशास्त्रों का संग्रह कर के अपने अर्थशास्त्र की रचना की थी उसी प्रकार सोमदेव ने भी लगभग उन्हीं ग्रन्थों के आधार पर नीतिवाक्यामृत की रचना की और उन ग्रन्थों के साथ ही अर्थशास्त्र को भी नीतिवाक्यामृत की रचना का आधार बनाया। जब वोनों ग्रन्थों की रचना पूर्वाचार्यों के ग्रन्थों के आधार पर की गयी है तो उन में कुछ साम्य दृष्टिगोचर होने पर कोई आश्चर्य को बात नहीं। इस अपार पर पन्थको का संदेश रूप नहीं माना जा सकता । प्राचीन साहित्य का प्रभाव सभी लेखकों पर पड़ता है । जो विचार पूर्वाचार्यो द्वारा प्रतिपादित कर दिये जाते हैं उन को स्वीकार करना उन आचायों के गौरव को बढ़ाना है । इसी सिद्धान्त के आधार पर कौटिल्य एवं सोमदेव ने पूर्ववर्ती साहित्य के सार को ग्रहण किया है और उस के साथ ही अपने मौलिक विचारों एवं नवोन अनुभव का समावेश भी किया है। जिस प्रकार आचार्य कौटिल्य ने 'इत्याचार्या" कहकर 'इतिकौटिल्या' के द्वारा अपना स्वतन्त्र मत व्यक्त किया है उसी प्रकार आचार्य सोमदेव ने भी अपने मौलिक विचार प्रकट किये हैं । तोतिवाक्यामृत में लेखक की स्वतन्त्र प्रतिमा एवं मौलिकता के दर्शन सर्वत्र होते हैं। सोमदेव ने अपने समय में उपलब्ध प्राचीन नोति साहित्य का गम्भीर अध्ययन किया था और उन्होंने उस का प्रयोग अपने ग्रन्थ की रचना में किया। जिस प्रकार पूर्वाचार्यों का परिष्कृत स्वरूप कोटिल्य के अर्थशास्त्र में प्रकट १. डॉ० रामशास्त्री, कौटिलीय अर्थशास्त्र की भूमिका मन्ध यशोधर महाराज समकालेन सोमदेवसूरिया नीतिवाक्यामृतं नाम नीतिशास्त्र वित कामन्दकी कोटिलो मार्थशास्त्रादेव सक्षिप्य संगृहीतमिति तद वाक्यशैली परीक्षायां निस्संशयं ज्ञायते । भारत में राजनीतिशास्त्र के अध्ययन की परम्परा ११
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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