SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कौटिल्य ने भी कहा है कि विजेता को विजित रामा की मूर्ति, धन, पुत्र तथा पत्नी आदि पर अधिकार नहीं करना चाहिए । अन्यपा उस से मण्डल के राजा अप्रसन्न हो जायेंगे और मृतक राजा के पुत्र या उस के वंशज को राजसिंहासन पर आसीन कर देंगे।' राजनीतिप्रकाश का कथन है कि विजित राजा भले ही दोपो हो किन्तु विजेता को उस के दोष के कारण उस के देश को नष्ट नहीं करना चाहिए, क्योंकि उस ने कभी जनता से परामर्श लेकर तो दोषपूर्ण व्यवहार प्रारम्भ नहीं किया था। शुक्र के मत में इस सम्बन्ध में थोड़ा अन्तर है। ये लिखते हैं कि शत्रुओं को जीतकर राजा को उन से कर ग्रहण करना चाहिए अथवा राज्य का अंश अथवा समस्त राज्य को हस्तगत कर लेना चाहिए और प्रजा को आनन्दित करना चाहिए । मृतराजा के योग्य पुत्र अथवा वंशज को उस के राजसिंहासन पर आसीन कर देना चाहिए तथा उस के विजित प्रदेश का बत्तीसर्वा भाग उस के निर्वाह के लिए देने की व्यवस्था कर देनी चाहिए। भारतीय इतिहास के अबलोकन से विदित होता है कि प्राचीन सम्राट् तथा विजेता प्रायः इन नियमों के अनुसार ही व्यवहार करते थे। युद्ध में मारे गये सैनिकों की सन्तति के प्रति राजा का कर्तव्य आचार्य सोमदेव ने युद्ध में मारे गये सैनिकों की सन्तति का पालन-पोषण करना राजा का पुनीत कर्तव्य बत्ताया है। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो वह सदैव उन का ऋणी रहता है। आचार्य ने इसे अनर्थ कहा है और इस का परिणाम राजा के लिए हानिकारक बतलाया है (२०, ९) । वास्तव में युद्धस्थल में मृत्यु को प्राप्त हए सैनिकों को सन्तति का उचित ढंग से पालन-पोषण करने का उत्तरदायित विजिगीपु का होमा सर्वथा उचित ही है। १. कौ० अर्य, १६। कर्मणि मृतस्य पूर्व राज्य स्थापयेत् । एवमय इण्टोपनताः पुत्रपौत्राननुवतन्ते । यस्ट्रमातान्हवा वध्या नाविन्यपुत्रदारानभिमन्यत सस्मोहिग्न मण्डलमभानायोपतिते । २. राजनीतिप्रकाश-पृष्ठ ११ । ३. शुक्र०४, १२६१-१९६२ तथा १२१०-१२१८ । नीविषाक्यामृत में राजनोसि
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy