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________________ इस प्रकार साम-दामादि चार उपाय एवं सन्धिविग्रहादि षाड्गुण्य राजशास्त्र के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त हैं । इन के समुचित प्रयोग से राज्य को स्थिति सुदृढ़ बनी रह सकती है। जिस प्रकार प्रजा में सन्तोष के लिए एवं राज्य में सुख और समृद्धि के लिए सुशासन आवश्यक है, उसी प्रकार किसकी कूरा लिए अपने राज्य की सुरक्षा के लिए इन नीतियों का प्रयोग बहुत आवश्यक समझा गया है । इस में भूल होने का परिणाम राज्य के लिए घातक होता है । अतः इस सम्बन्ध में पूर्णरूपेण सतर्क रहने का आदेश धर्मशास्त्र तथा अर्थशास्त्र दोनों में ही दिया गया है । युद्ध शान्तिपूर्ण आचार्य सोमदेवरि का मत है कि जहाँतक सम्भव हो बुद्धि से उपायों द्वारा राजा को अपने पारस्परिक झगड़ों का निबटारा करना चाहिए (३०, २) । बुद्धिबल सर्वश्रेष्ठ होता है। जो कार्य शस्त्रबल से सिद्ध नहीं होते ने बुद्धिबल से सिद्ध हो जाते है ( ३०, ५-६ ) । साम, वाम, भेद आदि उपायों में बुद्धि का ही प्रयोग होता है | अतः जहाँ तक सम्भव हो इन उपायों द्वारा राजा को अपने उद्देश्य की पूर्ति करनी चाहिए। परन्तु जब वह इन उपायों द्वारा असफल हो जाये तभी शस्त्र युद्ध करने का विचार करना चाहिए ( ३०, ४) । १ कभी-कभी युद्ध अनिवार्य भी हो जाता है । अतः ऐसे अवसर पर पूर्ण तैयारी के साथ युद्ध करना तथा दुष्टों का दलन करना राजा का परम धर्म है। उस के लिए रणक्षेत्र में मृत्यु प्राप्त करना प्राचीन आचार्यों की दृष्टि में परम आदर्श है | मनु का निर्देश है कि प्रजा की रक्षा करते हुए राजा को मुख-क्षेत्र से भागना नहीं चाहिए और जो इस पुनीत कार्य को करते हुए मृत्यु को प्राप्त होते हैं उन्हें स्वर्ग मिलता है । महाभारत में भीष्म कहते हैं कि क्षत्रिय के लिए घर में मृत्यु प्राप्त करना पाप है । उस के लिए तो प्राचीन परम्परा यही है कि युद्ध करते-करते युद्ध क्षेत्र में उस की मृत्यु होनी चाहिए । आचार्य सोमदेव ने भी इन्हीं भावों को नोतिवाक्यामृत में व्यक्त किया है। उनका कथन है कि शत्रु के आक्रमण से भयभीत होकर अपनी मातृभूमि को छोड़कर विजिगीषु को कहीं भागना नहीं चाहिए, अपितु राष्ट्र की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर देना चाहिए ( २०, १२ ) । युद्ध के सम्बन्ध में विजिगीषु के लिए कुछ निर्देश आचार्य सोमदेव का कथन है कि युद्ध का निर्णय बहुत सोच-विचार कर फरमा चाहिए। क्रोध के आवेश में नहीं। कभी-कभी वह क्रोष के आवेश में आकर बलिष्ठ १. धनु०७ २ महा० भीम० ११ ११ । अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध १६७
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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