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________________ था। वज' के समान प्रज्वलित तेजवाले जिस के अभिषार बन से श्रीमान् सुन्दर पर्व वाला मन्दवंश रूपो पर्वत समूल नष्ट हो गया । जो कार्तिकेय के समान पराक्रमशोल था और जिस ने अकेले ही अपनी मन्त्रशक्ति के द्वारा नृपचन्द्र चन्द्रगुप्त के लिए पृथ्यो का आहरण किया। जिस ने अर्थशास्त्रस्पी महोदधि से नीतिशास्त्ररूपी अमृत का उधार किला, स ब्रह्मस्व विगुल वे लिए RTEर है।' इस प्रकार कामन्दक ने विष्णुगुप्त के प्रति अपना आभार प्रदर्शित किया है । कामन्दक का अध्ययन विशाल था। उन्होंने अपने ग्रन्थ में विशालाक्ष, पुलोमा, यम आदि राजशास्त्र प्रणेताओं के मतों का उल्लेख किया है । उन के ग्रन्थ में राजनीति का विशद विवेचन हा है। कामन्दक राज्य के सप्तांग सिदान्त में विश्वास रखते हैं। उन के अनुसार स्वामी, अमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, कोश, बल तथा सुहृद् राज्य के अंग है । ये अंग एक दूसरे के सहायक है। उन्होंने राज्यांगों में राष्ट्र को बहुत महत्त्व प्रदान किया है । इस विषय में वे लिखते हैं कि राज्य के सम्पूर्ण अंगों का उद्भव राष्ट्र से ही हुआ है, अतः राजा सभी प्रयत्नों से राष्ट्र का उत्थान करे। जिस प्रकार यज्ञ में ऋषियों द्वारा की गयी हिंसा हिंसा नहीं मानी जाती, उसी प्रकार राजा द्वारा दुष्टों का निग्रह करने से उने पाप नहीं लगता, अपितु महान धर्म की प्रासि होती है। धर्म की सुरक्षा के लिए राजा अर्थ की वृद्धि करे। इस कार्य में प्रजा के जो व्यक्ति बाधक हों उन्हें दण्डित करें। वेद और शास्त्रों के विद्वान् जिस कार्य को प्रशंसा करें वह धर्म है और वे जिस की निन्दा करें वह अधर्म है। धर्म और अधर्म का ज्ञान प्राप्त करता हुआ राजा सज्जनों के प्रति स्नेह प्रदर्शित करे, उन को रक्षा करे तथा शत्रुओं का बध कर डाले। राज्य की प्रकृत्तियों के विषय में भी कामन्दक ने प्रकाश डाला है ! उन का कथन है कि राजशास्त्र के ज्ञासाओं ने अमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, कोश और द०६ को विजिमाषु की प्रकृति बतलाया है। उन्होंने राजा को न्यायपूर्वक व्यवहार करने का आदेश दिया है। उन का कथन है कि यदि राजा न्याय के पथ का अनुसरण करता है तो उस को एवं उस की प्रजा को धर्म, अर्थ और काम की प्राप्ति होती है और मदि वह इस के विपरीत आचरण करता है तो इन का विनाश होता है। १. कामन्दक नीतिसार १, २-६। २. कामन्दक गीतिसार ४,१स्वाम्पमाल्यश्च राष्टं च दुर्ग कोशौ मल मुहत । परस्परोपकारी सप्ताम' राज्यमुच्यते । ३. वही ६,३। ५. कही -८। १.कामन्दक-गीतिसार ८,४अनाधिराएगात शो दण्डश्च पञ्चमः । एता प्रकृतलरतज विजिगोषोरुराहताः । ॥ ६. वही १, ११1 मारत में राजनीतिशास्त्र के अध्ययन की परम्परा
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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