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________________ उन से उत्तोष आदि लेने का प्रयत्न करें तो वहाँ पर विदेशी श्यापारियों का आना बन्द हो जाता है। इसी कारण आचार्य सोमवेव शुल्क स्थानों की पूर्ण सुरक्षा को अत्यन्त आवश्यक समझते हैं। उन का कथन है कि राष्ट्र के शुल्क स्थान जो कि न्याय से सुरक्षित होते हैं अर्थात् जहाँ अधिक कर ग्रहण न कर के न्यायोपित कर लिया जाता है तथा चोरों आदि द्वारा चुरायी गयो प्रजा की धनादि वस्तु पुनः लौटा दी जाती है वहीं पर ध्यापारियों को क्रय और विक्रय योग्य वस्तुओं को अधिक संख्या में दुकानें होने के कारण वे स्थान राजा को मारमोन के समान अभिलाि वरपटान करने वाले होते हैं ( १९, २१)। राज्य की आय के अन्य साधन पूर्वोक्त रिक्त राजकोष की पूर्ति के उपाय भी राज्य की आय के प्रमुख साधन हैं। इन में सम्पत्ति कर प्रमुख पा । अकस्मात मिला हुआ धन तथा घनाथ पुरुषों को मृत्यु के उपरान्त उन के निःसन्तान होने को स्थिति में उस सम्पत्ति का अधिकारी राना ही होता था ( २१, १४)। इस के अतिरिक अधिक लाभ लेने वाले व्यापारियों के लाभ में से भी राजा को धन को प्राप्ति होती थी (८, १९ )। उत्कोच लेने वाले राज्याधिकारियों से धन प्राप्त करने के उपाय - भाचार्य सोमदेव ने सत्कोच लेने वाले राज्याधिकारियों की घोर निन्दा की है और उन से राजा को सावधान रहने का परामर्श दिया है। आचार्य का मत है कि राजा को उन लोगों पर कठोर नियन्त्रण रखना चाहिए तथा उन के साथ कभी नहीं मिलना चाहिए। यदि राजा भी उन में धन के लोभ से साझीदार हो जायेगा तो इस से महान् अनर्थ होगा (८, २०)। उस का राष्ट्र एवं कोष सभी कुछ नष्ट हो जायेगा । इस के साथ हो सोमदेव ने उन उपायों का भी उल्लेख किया है जिन के द्वारा उन राज्याधिकारियों से उत्कोच का घन पुनः प्राप्त हो सकता है। इस का सर्वप्रमुख उपाय यही है कि राजकर्मचारियों पर पूर्ण नियन्त्रण रखा जाये, जिस से कि बै प्रजा से उत्कोच लेने का साहस ही न कर सकें। यदि नियन्त्रण रखने पर भी उन्होंने इस अनुषित रीति से धन संग्रह कर लिया है तो उस धन को राजा निम्नलिखित उपायों से ग्रहण करे १. नित्य परीक्षण-राजा का मह कर्तव्य है कि वह सदैव इन अधिकारियों का निरीक्षण गुप्तचरों की सहायता से करता रहे । यदि इस ढंग से उसे कोई अधिकारी दोषी मिले तो उसे कठोर दण्ड देना चाहिए । २. कर्मविपर्यय-उन्हें उच्च पदों से पृथक् कर के साधारण पदों पर नियुक्त करना चाहिए जिस से कि वे भयभीत होकर उत्कोच द्वारा संचित धन को प्रकट करने के लिए विवश हो जायें। १९६ नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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