SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. औदक-चारों और नदियों से वेष्टित व मध्य में टापू के समान विकट स्थान अथवा बड़े-बड़े सरोवरों से वेष्टित मध्य स्थान को औदकदुर्ग कहते है। २. पर्वतदुर्ग-बड़े-बड़े प्रस्तरों अथवा विशाल चट्टानों से वेष्टित अथवा स्वयं गुफामों के माकार के बने हुए विकट स्थान पर्वतदुर्ग कहलाते हैं । ३. धन्बदुर्ग-जल, घास शून्म भूमि या ऊसर भूमि में बने हुए विकट स्थान को धन्यदुर्ग कहते हैं। ४. वनदुर्ग-चारों ओर धनी कीचड़ से युस्त. अपवा कोटेदार माड़ियों से वेष्टित स्थान को वनदुर्ग कहते हैं । जलदुर्ग और पर्वतदुर्ग देश की रक्षा के लिए तथा धन्यदुर्ग एवं वनदुर्ग आटविकों की रक्षा के लिए होते है। राजा भो शत्रुकृत आक्रमणों से उत्पन्न आपति के समय भागकर इन दुर्गों में आश्रय ले सकता है। मनु ने छह प्रकार के दुर्गा का वर्णन किया है। उनके अनुसार धन्वदुर्ग, महीदुर्ग, जलदुर्ग, वृक्ष दुर्ग, मदुर्ग तथा गिरिदुर्ग आदि युगों के भेद है । इम दुर्गों की व्याख्या भी मनु ने की है। उन्होंने गिरिदुर्ग को विशेष महत्व दिया है। शुक्रनीतिसार में सात प्रकार के दुर्गों का वर्णन मिलता है। शुक्र के अनुसार एरिणदुर्ग, पारिखदुर्ग, वनदुर्ग, पन्चदुर्ग, जलदुर्ग, गिरिदुर्ग तथा सैन्यदुर्ग आदि दुर्गा के भेद है। उन्होंने इन सात प्रकार के दुर्गा की व्याख्या भी की है जो इस प्रकार है-जो दुर्ग झाड़ी, कोटे, पत्थर, कसरभूमि तथा गुप्तमार्गयुक्त हों उसे एरिणदुर्ग कहते हैं । जिस दुर्ग का परकोटा ईट, पत्थर, मिट्टी आदि की दीवार से बना हो उसे पारिखदुर्ग कहते है। जो विशाल चने वृक्षों और काँटों से घिरा हो उसे वनदुर्ग कहते हैं। जिस दुर्ग के चारों ओर जल का प्रवाह हो उसे धन्बदुर्ग कहते हैं और जो दुर्ग जल से घिरा हो उसे जलदुर्ग कहते हैं। जो बड़े ऊँचे स्थान पर निर्जन स्थान में बनाया जाये उसे गिरिदुर्ग कहते हैं। जिस दुर्ग में सैनिक शिक्षा के विशेषज्ञ शूरवीर हों और जो अजेय हो उसे सैन्यदुर्ग कहते है। जिस में शूरवीरों के अनुकूल बन्धुजन रहते हों वह सहायदुर्ग कहलाता है। पारिख से एरिण, एरिण से पारिस और पारिख से वनदुर्ग श्रेष्ठ है। सहायदुर्ग और सैन्यदुर्ग सम्पर्ण दुर्गों के साधन है। इन के अभाव में समस्त दुर्ग व्यर्थ है। समस्त दुर्गों में आचार्यों ने सैन्यदुर्ग को ही महत्त्व दिया है। आचार्य कौटिल्य ने भी दुर्गों के भेदों पर प्रकाश डाला है। उन के अनुसार १. मनु०७, ७०-७१। धनुर्वर्ग महीदुर्गमदुर्ग वामेत्र वा। गर्ग Firरितु वा समाश्रित्य सरपुर । सर्वेग तु प्रयत्नेन गिरिदुर्ग रामाश्रया। एपा हि बहुगुण्येन गिरिदु विशिष्यते । ३. बही। १३
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy