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________________ अर्थशास्त्र ___अर्थशास्त्र के रचयिता आचार्य कौटिल्य महान राजनीतिज्ञ थे। कौटिल्य से पूर्व अनेक प्राचीन आचार्यों ने अर्थशास्त्रों को रचना की थी। उन समस्व अर्थशास्त्रों में कोटिलीय अर्थशास्त्र का अद्वितीय स्थान है। उन्होंने अपने अर्थशास्त्र में स्पष्ट लिखा है कि प्राचीन आचार्यों ने जिन अर्थशात्रों की रचना की थी उन सब का सार लेकर कोटिल्य ने इस अर्थशास्त्र की रचना की है। इस कथन का यह अर्थ कदापि नहीं है कि कौटिल्य का अर्थशास्त्र केवल संकलन मात्र है और उस में कोई मौलिकता नहीं है। वास्तव में कोटिल्य का अर्थशास्त्र अनेक दृष्टियों से एक मौलिक ग्रन्थ है । परन्तु इस विषय पर रचना करने वाले वे प्रथम आचार्य नहीं थे। अपने ग्रन्थ में उन्होंने अपने पूर्ववर्ती आचार्यों के विचारों को अनेक स्थलों पर आलोचना की है और उन से भिन्न विचार व्यक्त किये हैं। कई स्थानों पर उन्होंने परम्परागत विचारधारा को छोड़ कर नये सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इस के अतिरिक्त व्यापकता तथा विशालता में इस विषम पर लिखित कोई अन्य ग्रन्थ इस की तुलना में नहीं ठहर सकता । कौटिल्य के अर्थशास्त्र की रचना के पश्चात् किसी भी आचार्य ने इस विषय पर ग्रन्थ लिखने का साहस नहीं ii irt सभोगे क. प्र म में स्वीका : है। शुक्रनीति तथा नीतिवान्यामत के अतिरिक्त जो भी ग्रन्थ अर्थशास्त्र के पश्चात् लिखे गये दे या तो अर्थशास्त्र के मुख्य मुख्य उद्धरणों का संकलन मात्र है अथवा उस के प्रतिपाद्य विषय का संक्षिप्त रूप से वर्णन करते हैं । अतः लगभग एक सहा वर्ष तक कोटिलोय अर्थशास्त्र की प्रधानता बनी रही और आज भी बनी हुई है। यह उस की उत्कृष्टता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। अर्थशास्त्र का प्रतिपाद विषय राज्य तथा उस के अन्तर्गत निवास करने वाली जनता का कल्याण है। राज्य की वृद्धि और संरक्षण तथा उस में निवास करने वालों की सुरक्षा तथा कल्याण किस प्रकार से हो सकता है, इन्हीं उपायों का वर्णन अर्थशास्त्र में प्रमुख रूप से किया गया है। अर्थशब्द का प्रयोग अर्थशास्त्र में एक विशिष्ट अर्थ में किया गया है। कौटिल्य के अनुसार मनुष्यों से युक्त भमि का ही नाम अर्थ है । इस भूमि को प्राप्त करने और रक्षा करने के उपायों का निरूपण करने वाला शास्त्र अर्थशास्त्र कहलाता है। अतः कौटिल्य ने अर्थशास्त्र शब्द का प्रयोग उसी अर्थ में किया है जिस पर्थ में प्राचीन आचार्यों ने दण्डनीति शब्द का प्रयोग किया। इस प्रकार दण्डनीति और अर्थशास्त्र में कोई भेद नहीं है । दोनों ही शास्त्र राज्य तथा उस को शासन १. को अर्थ ० १.१। पृथिव्या लाभ पालने च पायर्थशास्त्राणि पूर्वाचाय: प्रस्तावितान मशतानि संकमियमर्थ शास्त्रं कृतम् । २. कौ० अ०१५.१५ मनुष्याणां त्तिरर्थः। मन यो भूमिरित्यर्थः । तस्याः पृथिव्या लाभपालनोपायः शास्त्रमार्थशारत्रमिति। भारत में राजनीतिशास्त्र के अध्ययन की परम्परा
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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