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________________ १. अत्यन्त क्रोधी-कोष मनुष्य का सन्तुलन खो देता है और उसे उचितअनुचिप्त के ज्ञान से पथभ्रष्ट कर देता है। यदि क्रोधी व्यक्ति को अमात्य बना दिया जाये और किसी अपराध के कारण उसे दण्ड दिया जाये तो वह क्रोध के कारण या तो स्वयं नष्ट हो जाता है अथवा अपने स्वामी को नष्ट कर देता है ( १८, १४)। २. बलि पक्ष वाला-ऐसा व्यक्ति भी अमात्यपद पर नियुक्त किये जाने में सर्थया अयोग्य है जिस का पक्ष ( माता-पिता आदि ) बलिष्ठ होता है। वह अपने पक्ष की सहायता से राजा को नष्ट कर देता है ( १८,१५)। ३. अपवित्र-उसी व्यक्ति को अमात्य बनाना चाहिए जो श्रेष्ठ चरित्र वाला हो। ऐसे व्यक्ति का प्रभाष ही जनता पर अच्छा पड़ सकता है 1 अपवित्र व्यक्ति प्रभावहीम होता है । यह राजा को अपने स्पर्श से दूषित करता है ( १८, १३ )। ४. व्यसनी-यदि अमात्य किसी भी व्यसन का दास है तो वह राजा को विनाश की ओर ले जायेगा। आचार्य सोमवेद के अनुसार व्यक्ति में यदि एक भी व्यसन है तो वह विनाश का कारण है ( १६, ३३)। व्यसनी को कर्तव्य अकर्तव्य का कोई भी ज्ञान नहीं रहता। ५. अकुलीन-समस्त आचार्यों ने कुलीन व्यक्तियों को ही अमात्य बनाने का निर्देश दिया है। आचार्य सोमदेव लिखते हैं कि नीच कुल वाला व्यक्ति थोड़ा-सा भी चल पास कर के मदोन्मत्त हो जाता है और राज्य को हानि करता है (१८, १३)। ६.हठी-हठी व्यक्ति दुराग्रह के कारण किसी को भी बात नहीं मानता और अपनी मनमानी करता है। किसी कार्य से चाहे राज्य की कितनी भी हानि क्यों न हो किन्तु वह अपनी ही हठ करता है ( ५, ७६ )। ७. विदेशी-किसी भी विदेशी को अर्थ-सचिव या उच्च सेना का अधिकारी नहीं बनाना चाहिए । इस सम्बन्ध में आचार्य सोमदेव लिखते हैं कि राजा विदेशी पुरुष को धन के आय-व्यय का अधिकार एवं प्राणरक्षा का अधिकार न देवे ( १८, १८ ) । अर्थात् उन्हें अपने सचिव एवं सेना-सचिव के उत्तरदायित्वपूर्ण पदों पर नियुक्त न करे क्योंकि विदेशी उस के राज्य में कुछ समय ठहर कर के अपने देश को प्रस्थान कर जाते है और अवसर पाकर राजद्रोह करने लगते हैं तथा राज्य का धन भी अपने साथ ले जाते हैं। अतः अर्थ-सचिव व सेना-सचिव अपने देवा का योग्य व्यक्ति होना चाहिए क्योंकि अपने देशवासी से उस के द्वारा एकत्रित किया हुआ धन कालान्तर में भी प्राप्त किया जा सकता है किन्तु विदेशी से वह धन नहीं मिल सकता क्योंकि वह तो उस धन को लेकर अपने देश को भाग जाता है ( १८, ११)। ८. कृपण-कृपण व्यक्ति को भी कभी अमात्य नहीं बनाना चाहिए । कृपण जा राजकीय धन ग्रहण कर लेता है तो उस से पुन: धन वापस मिलना पाषाण से बल्कलालने के समान असम्भव होता है ( १८, २०)। अतः कृपण मनुष्य को भी कभी अर्थ-सचिव नहीं बनाना चाहिए । नीतिवाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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