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________________ से काम लिया जाता था। मन्त्रभेद किन कारणों से हो जाता है इस विषय में भी प्राचीन राजशास्त्र प्रणेताओं ने गम्भीर दृष्टि से विचार किया है, क्योंकि यह एक महत्त्वपूर्ण विषम था । आचार्य सोमदेव के अनुसार गुप्त मन्त्र का भेद पाँच कारणों से होता है-{१) इंगित, (२) शरीर की सौम्य-रौद्र आकृति, (३) मदिरापान, (४) प्रमाद' तथा (५) निद्रा । इन पांच बातों के कारण मन्त्रणा प्रकाशित हो जाती है (१०, ३५) । इन बातों की व्याख्या भी आचार्य सोमदेव ने की है जो इस प्रकार है-जब राजा मन्त्रणा करते समय अपनी मुखादि को विजातीय (मुस अभिप्राय को प्रकट करने वाली) वेध बनाते हैं तो इस से गुप्तचर उन के अभिप्राय को जान लेते हैं। इसी प्रकार क्रोध से उत्पन्न होने वाली भयंकर प्राकृति और शान्ति से होने वाली सौम्य आकृति को हाल कर पचर यह जान लेते हैं कि राजा की भयंकर आकृति युद्ध को और सौम्य भाकृति सन्धि को प्रकट कर रही है। इसी प्रकार मदिरापान आदि प्रमाद तथा निद्रा भो गुप्त रहस्य को प्रकाशित कर देते हैं । अतः राजा को इन का सर्वथा त्याग कर देमा पाहिए { १०, ३६.४१)। धशिष्ठ ने कहा है कि राजा को मन्त्रणा के समय अपने मुख की आकृति शुभ और शरीर को सोम्य रखना चाहिए तथा निद्रा, मद और आलस्म को त्याग देना चाहिए । उपर्युक्त बातों के साथ ही मन्त्र को गुप्त रखने के लिए राजा को अन्य बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए। राजा मन्त्र को गुस रखने के लिए किस प्रकार मन्त्रणा करे इस विषय पर विभिन्न आचार्यों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं । आचार्य कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ अर्थशास्त्र में भारद्वाज का यह मत उद्धृत किया है कि गुह्म विषयों पर राजा अकेला स्वयं ही विचार करे क्योंकि यदि उन विषयों पर मन्त्रियों से परामर्श किया जायेगा तो मन्त्र कभी गुप्त नहीं रह सकता। मन्त्रियों के भी उपमन्त्री होते है तथा उन के भी अन्य परामर्शदाता होते है। मन्त्रियों को इस परम्परा के कारण मन्त्र गत नहीं रह सकता । अतः राजा कार्य के प्रारम्भ होने अथवा उस के पूर्ण होने से पूर्व किसी भी व्यक्ति को यह आभास न होने दे कि वह क्या करने जा रहा है। किन्तु विशालाक्ष ने इस मत का विरोध किया है। उनके अनुसार यदि राजा किसी विषय पर अकेला हो विचार करेगा तो उसे मन्त्र सिद्धि नहीं होगी। इस का कारण यह है कि राजा को प्रत्येक विषय का पूर्ण ज्ञान होना असम्भव है। मन्त्री ही उस को सब विषयों का ज्ञान प्राप्त कराते हैं। आचार्य पराशर का कथन है कि राजा को मन्त्रियों के साथ परामर्श करने से मन्त्र का ज्ञान तो हो सकता है, किन्तु इस पद्धति से उप्स को रक्षा सम्भव नहीं है। इसलिए राजा जो करना चाहता है उस से विपरीत बात मन्त्रियों से पूछ। यह कार्य है, यह कार्य ऐसा था, यदि कार्य ऐसा हो तो क्या करना १. वशिष्ठ-नौतिवा. पृ. ११६ मन्त्रविका महीपेन कर्दन्यं शुभाति । आफारश्च शुभ कार्यस्त्याख्या निद्रामदालसाः । १०. नीतिचाक्यामृत में राजनीति
SR No.090306
Book TitleNitivakyamrut me Rajniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM L Sharma
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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