SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 562
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीति कम् जिस मुकद्दमे में यदा तदा कोई भी पुरुष साक्षी होता है तब न्यायाधीश द्वारा वादी प्रतिवादी को शपथ दिलाकर भी सत्य का निर्णय करना व्यर्थ है क्योंकि दुराग्रह में निर्णय करने में सार्थकता नहीं होती । यदि दोनों मुद्दई मुद्दायले द्वारा माने हुए श्रेष्ठपुरुष के साक्षी गवाही होने पर सत्य की जांच के लिए शपथ कराना सर्वथा निरर्थक है 1175 ॥ भार्गव ने भी कहा है : अधर्मापि भवेत् साक्षी विवादे पर्यवस्थिते । तथा दैवी क्रिया न स्यात् किं पुनः पुरुषोत्तमे ॥11॥ शपथ के योग्य अपराधी, उसके निर्णय पर दण्डविधान : यः परद्रव्यमभियुञ्जीताभिलुम्पते वा तस्य शपथः क्रोशो दिव्यं वा 1116 || अभिचारयोगैर्विशुद्धस्याभियुक्तार्थ सम्भावनायां प्राणाशेषोऽर्थापहारः 1117 अन्वयार्थ :(यः) जो (परद्रव्यम्) धरोहर को (अभियुञ्जीत:) हड़पे (वा) अथवा ( अभिलुम्पते ) नष्ट करे ( तस्य ) उसको ( शपथ : ) सौगन्ध, (क्रोशः ) कोप भय (वा) अथवा (दिव्यम् ) दिव्यक्रियाशपथ द्वारा न्याय है 1116 || ( अभिचारयोगैः ) कूटनीति द्वारा (विशुद्धस्य ) शुद्ध की (अभियुक्तार्थ) अपराध के ( सम्भावनायाम् ) संभवति होने पर ( प्राणावशेष :) प्राण दण्ड छोड़ (अर्था:) धन ( अपहार :) हरण करना ||17 || विशेषार्थ :- दूसरे का धन या धरोहर हरण करने वाला या नष्ट करने वाले अपराधी का निर्णय करने के लिए साक्षी के अभाव में न्यायाधीश को दिव्यक्रिया ( शपथ कराना आदि) उपाय काम में लाने चाहिए । गर्ग ने भी कहा है : अभियुञ्जीत चेन्मर्त्यः परार्थं वा विलुम्यते । शपथस्तस्य क्रोशो वा योग्यो वा दिव्यमुच्यते ॥1 ॥ इसमें भी अपराधी की जांच के लिए शपथ का विधान किया है || ||16 || यदि वादी प्रबुद्धोऽपि दिव्याद्यैः कदजैः कृतैः । पश्चात्तस्य च विज्ञानं सर्वस्वहरणं स्मृतम् ॥॥1॥ विशेषार्थ :- जिस अपराधी ने अपने अपराध की शुद्धि प्रथम कूटिनीतियों, घूंसादि के साक्षी - गवाहों द्वारा सिद्ध कर दी हो और पुनः अपराध का भेद प्रकट हो जाय तो अर्थात् चोरी आदि सिद्ध होने पर न्यायाधीश उसे प्राण दण्ड की सजा न देकर उसके धन अपहरण करावे |117|| शुक्र विद्वान ने भी यही कहा है 515
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy