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________________ मीति वाक्यामृतम् A सम सुन्दर समझकर प्रेम करता है । अभिप्राय यह है कि विवेकियों को परनारी से प्रीत नहीं करना चाहिए । 38 ॥ एक स्त्री से लाभ, परस्त्री, वेश्या त्याग, सुख के कारण, गृहप्रवेश : स सुखी यस्य एक एव दारपरिग्रहः ।।9।। व्यसनिनोयथासुखमभिसारिकासुन तथार्थवतीषु 1140॥ महान् धनव्ययस्तदिच्छानुवर्तनं दैन्यं चार्थवतीषु ।11। अस्तरणं कम्बलो जीवधनं गर्दभः परिग्रहो बोढा सर्वकर्माणश्च भुत्या इति कस्य नाम न मुखानहानि ।।42 ।। अन्वयार्थ :- (यस्य) जिसके (एक एव) एक ही (दारपरिग्रहः) स्त्री (स:) वह (सुखी) सुखी [अस्ति] है ।।39॥ (व्यसनिनः) व्यभिचारियों को (यथा) जिस प्रकार (अभिसारिकासु) व्यभिचारिणियों में (न) नहीं (तथा) उसी प्रकार (अर्थवतीषु) वेश्याओं में [न भवति] नहीं होता 14011 (तद्) (अर्थवतीषु) उस वेश्या वेश्याओं की (इच्छानुवर्तनम्) इच्छापूर्ति में (महान्) अत्यन्त (धनव्ययः) धनखर्च होता है, जिससे (दैन्यम्) दीन रहता है । 41 | (अस्तरणम्) विछावन (कम्बलः) कामरी (जीवधनम्) जीवनोपयोगी साधन-कृषि के साधन बैल, गाय, स्त्री रूप परिग्रह, कार्यनिपुण सेवक आदि (गर्दभः) गधा (परिग्रहः) वस्तुएँ (बोढा) पलि (च) और (सर्वकर्माणः) सर्व कार्यनिपुण (भृत्याः) नौकर (इति) ये (कस्य) किसके (नाम) नहीं (सुखावहानि) सुख के हेतु नहीं ? हैं ही 142॥ विशेषार्थ :- कलयुग की लीला विचित्र है । इस समय जिसके एक ही पत्नि है वही सुखी रहता है ।।39॥ चाणक्य ने भी कहा है : अपि साधुजनोत्पन्ने द्वे भार्ये यत्र संस्थिते । कलहस्तत्र नो याति गृहाव कदाचन ॥1॥ अर्थात् सत्पुरुष के भी यदि दो स्त्रियाँ हैं और उनमें परस्पर कलह न हो ऐसा कदाऽपि नहीं हो सकता । कलह से रक्षक को एक ही पत्नी बनाना चाहिए ।।1।। व्यभिचारी पुरुषों को जिस प्रकार कुशीली-व्यभिचारिणी स्त्रियों से सुख प्राप्त नहीं होता उसी प्रकार वेश्याओं से भी उसे सुख कदाऽपि नहीं मिल सकता । क्योंकि वेश्यानुरागी का प्रचुर धनखर्च होता है । सब कुछ उनको अर्पण करने पर भी वे तृप्त नहीं होती यह निर्धन हो जाता है, दीन होकर धनेश्वरों से याचना करता है और अपमान जन्य अनुताप सहता है । नीतिज्ञ सदाचारी पुरुषों को दुराचारिणी और वेश्याओं से सतत् दूर रहना चाहिए । 40-41॥ यदि मनुष्य को सोने के लिए गद्दे, तकिया, ओढ़ने को कम्बल, जीविका के साधन कृषि के लिए क्षत्र, गाय, बैल, आदि जीव धन, धर्मपत्नी, कार्यनिपुण सेवक आदि वस्तुएँ मिल जायें तो सुख क्यों न होगा.? सभी को सुख होगा ही। 42 ॥ लोभयाचना से हानि, दारिद्र दोष, धनाढ्य की प्रशंसा : लोभवति भवन्ति विफलाः सर्वे गुणाः ॥13॥ प्रार्थना कं नाम न लघयति ॥14॥न दारिद्रयात्परं पुरुषस्य 1 (लाञ्छनमस्ति यत्संगेन सर्वेगुणा निष्फलतां यान्ति 145 ॥ अलब्धार्थोपि लोको धनिनो भाण्डो भवति ।।46 502
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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