________________
नीति वाक्यामृतम्
अन्वयार्थ :- (भर्तुः) स्वामी की (आदेशम् ) आज्ञा को (न) नहीं (विकल्पयेत्) उलंघन करे | 163 | (अन्यत्र ) इन्हें छोड़कर ( प्राणबाधा ) प्राणनाशक ( बहुजनविरोधी) लोगों से विरोधकारी (पातकेभ्यः) पाप में प्रवृत्ति कराने वाली 1164 || (बलवत्पक्षपरिग्रहेषु) अपने ही कुटुम्बी सेना कोष से बलशाली हो जायें तो ( वशीकरणम्) उन्हें आधीन करने को राजा (दायादिषु ) परिवारजनों में (आप्तपुरुषान्) प्रामाणिकों को (पुरः सरः) अग्रेसर करे (वा) अथवा ( विश्वास : ) विश्वस्त करे एवम् (गूढपुरुषनिक्षेप :) गुप्तचर भेजे (प्रणिधिः ) अभिप्राय ज्ञात करे 1165 | ( सुते ) पुत्र (वा) अथवा (दायादे ) भाई बन्धु के ( दुर्बोधे ) मूर्ख होने पर ( सम्यग्युक्तिभिः) समीचीन युक्तियों द्वारा भी (दुरभिनिवेशम्) विपरीत अभिप्राय को (अवतारयेत्) नष्ट करते हैं 11166 ॥ (उपचर्यमानेषु ) उपकारी (साधुषु ) सत्पुरुषों में (विकृतिभजनम् ) विपरीतता उत्पन्न करना (स्वहस्त) अपने हाथ (अङ्गारः) अग्नि (आकर्षणम् ) खींचने ( इव) समान [ अस्ति ] है 1167 | ( क्षेत्र-वीजयो :) भाता - पिता की ( वैकृत्यम्) विकृति - अशुद्धि (अपत्यानि ) सन्तान को ( विकारयति) विकृत दूषित कर देती हैं 1168
विशेषार्थ :- सेवक का, स्वामी आज्ञा पालन करना परम कर्तव्य है । परन्तु यदि स्वामी आज्ञा प्राण - नाशिनी, वैर विरोध वर्द्धिनी, पाप कार्यों में प्रवर्तन कराने वाली हो तो उसका पालन नहीं करे। शेष सभी कार्यों मे सर्वत्र सेवक अपने स्वामी की आज्ञा को सहर्ष पालन करे । " आज्ञा मात्र फलं राज्यम्" कहा है 1163-64 ।।
सैन्य व कोष बलवर्द्धक होते हैं और दुर्जनों को अभिमान बढ़ाने वाले भी होते हैं । यदि राजा के सजातीय पारिवारिक जन इन शक्तियों से बलिष्ठ हो दुर्विनी: विपरीत हो जायें तो राजा का काव्य उन्हें यशो करे । उसके लिए प्रथम उपाय है अपने शुभचिन्तक प्रामाणीक लोगों को अग्रेसर मुखिया नियुक्त करे। उनके द्वारा उन्हें विश्वास उत्पन्न करावे । दूसरा उपाय है उनके चारों ओर गुप्तचर नियुक्त करे, जिससे उनके अभिप्राय, चेष्टाएँ व गतिविधियों की जानकारी प्राप्त होती रहे। राजा यदि उनके क्रिया-कलापों से भिज्ञ होगा तो उन पर अंकुश लगाने का प्रयत्न करेगा और सफल भी हो सकेगा। साम-दाम, भेद-दण्ड नीतियों का उचित प्रयोग ही कार्यकारी होना संभव है 1165 11 शुक्र विद्वान ने कहा है :
वश्यगा:
1
'बलवत्पक्ष दायादा आमद्वारेण भवन्ति चातिगुतैश्च चरैः सम्यग्विशोधिताः ।। 1 ॥
दो ही उपाय हैं ।
सत्पुरुषों को नीति शास्त्रानुसार अपने पुत्र या कुटुम्बियों के दुरभि निवेष को खोटे आचरणों को सशक्त, योग्य, सुयुक्तियों द्वारा नष्ट करना चाहिए। सम्यक् प्रकार, प्रेम से युक्ति युक्त वचनों द्वारा उन्हें सन्मार्ग पर लाया जा सकता है ।166 | रैम्य कवि नीतिकार ने भी कहा :
पुत्रो वा बांधवो वापि विरुद्धोजायते यदा । तदा संतोष युक्तस्तु सत्कार्यो भूतिमिच्छता 111 ॥
शिष्ट व सत्पुरुषों को सदैव व सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए । जो मूर्ख गुणीजनों-शिष्ट पुरुषों के साथ अन्याय का व्यवहार करता है वह मानों अपने हाथ से अंगारों (आग) को खींचता है । अर्थात् अन्यायी स्वयं
444