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नीति वाक्यामृतम्
रथसैन्य का माहात्म्य व सप्तम-उत्साहीसेना एवं उसके गुण :
समाभूमिधनुर्वेदविदोरथारूढाःप्रहारो यदा तदा किमसाध्यं नाम नृपाणाम् ॥11॥ रथैरवमर्दितं पर बलं सुखेन जीयते मौल-भृत्यकभृत्यश्रेणी मित्राटविकेषु पूर्वं पूर्व वलं यतेत 112॥ अथान्यत्सप्तममौत्साहिकं बलं यद्विजिगीघोर्विजययात्राकाले पर राष्ट्रविलोडनार्थमेव मिलति क्षत्रसारत्वं शस्त्र जत्वं शौर्य सारत्वमनुरक्तत्वं चे त्यौत्साहिकस्य गुणाः 1113।।
अन्वयार्थ :- (यदा) जब (धनुर्वेदविदाः) धनुर्विद्यानिपुण (रथारुढाः) रथ पर सवार हो (समाभूमि) रणभूमि में (प्रहर्ताराः) प्रहार करें (तदा) उस समय (नृपाणाम्) राजाओं को (किम्) क्या (नाम) वस्तु (असाध्यम्) असंभव है ? कुछ नहीं 111 ॥ (रथैः) रथों द्वारा (अवमर्दितम्) कुचला (परबलम्) शत्रुदल (सुखेन) सरलतया (जीयते) जीती जाती है । (मौलः) परम्परा से आगत (भृत्यकभृत्यः) अधिकारी सैन्य (श्रेणी) श्रेणी सेना (मित्राः) मित्र सेना (आटविकेषु) आटविक सेना में (पूर्वम् पूर्वम्) पहले पहले (बलम्) सेना का (यतेत) प्रयोग करे 1112॥ (अथ) इनके सिवा (अन्यत) दूसरी (सप्तमम) सातवीं (औत्साहिकम) औत्साहिक (वलम्) सेना (यत) जो (विजीगीषोः) जीतने वालों को (जय यात्रा काले) विजयकाल में (पर-राष्ट्र) शत्रुराष्ट्र को (विलोडनार्थम्) नष्ट करने को (एव) ही (मिलति) मिलती है (क्षत्रसारत्वम्) क्षात्र (शस्त्रज्ञत्वम्) शस्त्रज्ञान (शौर्यसारत्वम्) वीरत्व (च) और (अनुरक्तत्वम्) स्वामी अनुराग (औत्साहिकस्य) औत्साहिक सेना के (गुणाः) गुण हैं 113|
विशेषार्थ :- समानभूमि समर में जब धनुर्विद्याविद् रथों पर सवार हो शत्रु पर प्रहार करते हैं तब राजाओं को क्या असाध्य रहता है ? कुछ भी नहीं ।।11 || अर्थात् विजयलाभादि सरलता से प्राप्त होती है । सारांश यह है कि समतल भूमि में संग्राम करने पर प्रवीण योद्धाओं द्वारा विजय निश्चित प्राप्त होती है । ऊबड़-खाबड भूमि में सेना-रधादि बराबर संचरित न होने से पराजय ही होती है ।।11 ॥ शुक्र विद्वान ने निम्न उद्धरण का भी यही आशय है :
रथारू हाः सुधानुष्का भूमिभागे समे स्थिताः ।
युद्धयन्ते यस्य भूपस्य तस्यासाध्यं न किंचन ।।10-1111 विजयाभिलाषी के रथों की सेना द्वारा नष्ट-भ्रष्ट हुई शत्रु सेना सरलता से जीती जा सकती है । परन्तु इसके साथ ही मौल-वंश परम्परा से चली आयी प्रामाणिक, विश्वस्त व युद्धविद्या विशारद पैदल सेना, अधिकारी सेना, सामान्य सेना, श्रेणी सेना, मित्र सेना व आटविक सैन्य, ये 6 प्रकार की सेनाएं हैं इनमें से सर्वप्रथम सारभूत सैन्य को युद्ध में सुसज्जित करने का प्रयत्न करना चाहिए । क्योंकि फल्गुसैन्य कमजोर, अविश्वासी, युद्धकाल में अकुशल, निस्सार सैन्य द्वारा तो पराजय सुनिश्चित है ही ।।12॥
विशेष विवरण चाणक्य ने किया है । वंश परम्परा से आने वाली नित्य वशी रहने वाली प्रामाणिक व विश्वासपात्र पैदल सेना को "सारबल" कहते हैं एवं गुण निष्प-। गजों व घोडों की सेना भी "सारभूत सैन्य" है । अर्थात् कुल, जाति, धीरता, कार्य करने योग्य आयु, शारीरिक बल, आवश्यक ऊँचाई-चौडाई आदि वेग, पराक्रम, युद्धोपयोगी शिक्षा, स्थिरता, सतत ऊपर मुंह उठाकर रहना, सवार की आज्ञा में रहना तथा और भी शुभ लक्षण व चेष्टाएँ इत्यादि ।
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