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नीति वाक्यामृतम्
अर्थ :कार्य वाह्य निष्प्रयोजन किसी की गुप्त बात को कभी भी प्रकट नहीं करना चाहिए । अश्रद्धायुक्त बात को कहने से आत्महित नहीं होता । अतः आत्महितैषियों को कभी भी किसी के गुप्त रहस्य को उजागर नहीं करना चाहिए |126 ॥
अज्ञात - वेष, राज क्रोध व पापी राजा से हानि, राजा द्वारा अपमानित व मान्य पुरुष :
वेषमाचारं वानभिज्ञातं न भजेत ॥ 27 ॥ विकारिणिप्रभौ को नाम न विरज्यते ॥28॥ अधर्म परे राज्ञि को नाम नाधर्मपरः ॥29॥ राज्ञावज्ञातो यः स सर्वैरवज्ञायते ॥ 30 ॥ पूजितं पूजयन्ति लोका: 11311
अन्वयार्थ :- (वेषम् ) छद्मवेषी (आचारम्) आचरण करने वाले (वा) अथवा (अनभिज्ञातम् ) आप्त पुरुषों को ( न भजेत्) काम में न लगावे | 1127 | ( विकारिणि) विपरीत कुपित (प्रभौ) राजा के होने पर उससे (को नाम) कौन पुरुष (न विरज्यते) विरक्ति नहीं होता ? | 128 ॥ (अधर्मपरे) अधर्म में तत्पर ( राज्ञि ) राजा के होने पर ( को नाम) कौन पुरुष (अधर्म पर : ) पाप में रत (न) नहीं होता ? | 29 ॥ ( राज्ञा) राजा के द्वारा ( अवज्ञात: ) तिरस्कृत (यः) जो पुरुष है (सः) वह (सर्वैः) सबके द्वारा ( अवज्ञायते ) तिरस्कृत होता है | 130 ॥ (पूजितम् ) राजसम्मानित को (लोकाः) सभी जन ( पूजयन्ति ) पूजते हैं सम्मानित करते हैं ॥31॥
विशेषार्थ छद्मवेषधारी - जो बहुमूल्य वस्त्राभूषण धारण कर स्त्री का रूप बनाकर सुन्दर हाव-भाव दिखाता हो, बनावटी प्रेम दर्शाता हो ऐसे व्यक्तियों की परीक्षा किये बिना, अनुभवी, वृद्धजनों द्वारा विश्वास किये बिना राजा को उन्हें अपने राजकार्यों में नियुक्त नहीं करना चाहिए । क्योंकि शत्रु लोग भी इस प्रकार किन्हीं गुप्तचरों को भेज सकते हैं । मायाचारपूर्ण व्यवहार द्वारा भेद पाने का प्रयत्न करते हैं । अतः विजिगीषु भूपालों को सावधान रहना चाहिए अन्यथा धोखे में पड़ने से राज्य की महती क्षति संभव हो सकती है ॥27॥ जिस पुरुष से राजा क्रुद्ध हो उससे कौन कुपित न होगा ? सभी उस पर क्रोधित होंगे ।। हारीत विद्वान ने कहा है :
विकारान् कुरुते योऽत्र प्रकृत्या नैव तिष्ठति । प्रभोस्तस्य विरज्येत निजा अपि च वान्धवः ॥ 1 ॥
जो अपराधी राजा द्वारा तिरस्कृत हुआ है उसके प्रति कौन सन्तुष्ट होगा ? उसके भाई-बन्धु भी कुपित हो जाते हैं अन्य की क्या बात ? अतः राजा के विरुद्ध कार्य करके उसका कोपभाजन नहीं बनना चाहिए 1128 |
"यथा राजा तथा प्रजा" भूपति के अनुसार प्रजा भी शिष्ट व दुष्ट होती है । अतः नृपति के पापी होने पर कौन व्यक्ति या प्रजा पापी नहीं होगी ? सभी पापात्मा ही रहेंगे 1129 | व्यास विद्वान ने भी यही अभिमत प्रकट किया है :
राज्ञिधर्मणि धर्मिष्ठाः पापे पापाः खले खलाः ॥ राजानमनुवर्तन्ते यथा राजा तथा प्रजाः ॥1 ॥
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